Jun 25, 2017

चाँद फ़िर निकला-पेइंग गेस्ट १९५७

चाँद शब्द से शुरू होने वाला एक खूबसूरत गीत सुनते और
देखते हैं फिल्म पेइंग गेस्ट से. फिल्म की कहानी का जो
पेइंग गेस्ट है वो कुछ भी पे नहीं करता है, हाँ परिभाषा
अनुसार वो पेइंग गेस्ट कहलाता है. फिल्म से ये तो पता
चलता है कि ये कंसेप्ट पुराना है. पहले की बम्बई और
आज की मुंबई में ये बरसों से चलन में है. दूसरे शहरों
में भी ये शुरू हो चुका है. एक कमरे में भेड़ बकरियों जैसे
लोगों को भर लो और उन्हें कहो- पेइंग गेस्ट. परिभाषा
और कंसेप्ट दोनों का कचरा हो गया है.

गीत की तरफ लौटते हैं. नायिका उसी फक्कड नायक का
इंतज़ार कर रही है और काफी रिच किस्म का गीत गा
रही है. कुछ फटीचरों की किस्मत काफी बुलंद होती है.
उन्हें काम धंधा मिले ना मिले खूबसूरत लड़की अवश्य
मिल जाती है प्रेम का राग अलापने के लिए.

ऐसी किस्मत वालों को देख के अधिकांश के सुलगते हुए
सीनों से धुंआ सा उठता है. आधुनिक युग में दिल की
जगह दूसरे क्षेत्र ने ले ली है. गीत मजरूह सुल्तानपुरी का
है और संगीत एस डी बर्मन का. लता मंगेशकर ने इसे
गाया है.



गीत के बोल:

चाँद फिर निकला  मगर तुम न आये
जला फिर मेरा दिल  करुँ क्या मैं हाय
चाँद फिर निकला

ये रात कहती है वो दिन गये तेरे
ये जानता है दिल के तुम नहीं मेरे
ये रात कहती है वो दिन गये तेरे
ये जानता है दिल के तुम नहीं मेरे
खड़ी मैं हूँ फिर भी निगाहें बिछाये
मैं क्या करूँ हाय के तुम याद आये
चाँद फिर निकला

सुलगते सीने से धुंआ सा उठता है
लो अब चले आओ के दम घुटता हैं
सुलगते सीने से धुंआ सा उठता है
लो अब चले आओ के दम घुटता हैं
जला गये तन को बहारों के साये
मैं क्या करुँ हाय के तुम याद आये

चाँद फिर निकला  मगर तुम न आये
जला फिर मेरा दिल  करुँ क्या मैं हाय
चाँद फिर निकला
……………………………………………………….
Chand fir nikla-Paying guest 1957

Artists: Nutan

2 comments:

चांदनी सूरी,  June 25, 2017 at 10:51 PM  

बहुत खूब कही

Geetsangeet July 15, 2017 at 7:44 PM  

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