चाँद को क्या मालूम-लाल बंगला १९६६
सुनवाया था पहले. अब सुनते हैं इस फिल्म का सर्वाधिक
लोकप्रिय गीत जिसे मुकेश ने गाया है. उषा खन्ना जैसा कि
हम पहले आपको बता चुके हैं, एक हतप्रभ, चम्तकृत करने
वाली संगीत निर्देशक हैं. वो कब कौनसा हिट गीत बना दें ये
आम जनता के लिए पहेली सा होता था.
उन्होंने काफी सारे लोकप्रिय गीतों का सर्जन किया है. प्रस्तुत
गीत में घोड़े की टाप वाली ताल का प्रयोग हुआ है. कुछ लोग
ऐसे मानते हैं कि ये ओ पी नैयर की स्टाइल वाला है, मेरा
विचार थोडा भिन्न है इस मामले में.
उषा खन्ना के गीतों में वाद्य यंत्रों की जमावट श्वेत श्याम युग
में कल्याणजी आनंदजी वाले अंदाज़ से मेल खाती थी. शत
प्रतिशत तो नहीं मगर काई सारे गीतों में. कुछ एक गीतों में वे
ओ पी नैयर जैसा सुनाई देतीं.
प्रस्तुत गीत गुलशन बावरा ने लिखा है. इसे फिल्म के निर्देशक
जुगल किशोर और जयंती नामक नायिका पर फिल्माया गया
है. नायिका के चहरे के भाव गीत के पहले हिस्से में परिपक्व
व्यक्ति जैसे हैं, गीत के मध्य में मंद बुद्धि बच्चों जैसे दिखलाई
दे रहे हैं और गीत के अंत में किसी ठीक ठाक अभिनय करने
वाली हीरोईन जैसे. निर्देशक ने उससे इतनी कसरत क्यूँ करवाई
ये समझ के बाहर है.
गीत के बोल:
चाँद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चकोर
वो बेचारा दूर से देखे वो बेचारा दूर से देखे
करे न कोई शोर
चाँद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चकोर
दूर से देखे और ललचाये
प्यास नज़र की बढ़ती जाये बढ़ती जाये
बदली क्या जाने है पागल
किसके मन का मोर
चाँद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चकोर
साथ चले तो साथ निभाना
मेरे साथी भूल ना जाना भूल ना जाना
मैने तुम्हारे हाथ में दे दी
अपनी जीवन डोर
चाँद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चकोर
वो बेचारा दूर से देखे वो बेचारा दूर से देखे
करे न कोई शोर
चाँद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चकोर
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Chand ko kya maloom-Lal Bangla 1965
2 comments:
बहुत ही धन्यवाद
आपको भी बहुत सा
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