देखा है ज़िंदगी को-एक महल हो सपनों का १९७५
भी ऐसे दौर में पहुंचा देती है जब सब अजनबी से लगने लगते
हैं या फिर एलियन से दिखलाई देने लग जाते हैं.
गीत सुनते हैं फिल्म एक महल हो सपनो का से रवि के संगीत
निर्देशन में जिसे गाया है किशोर कुमार ने. रचना साहिर की है.
गीत के बोल:
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
चहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
कहने को दिल की बात जिन्हें ढूँढते थे हम
कहने को दिल की बात जिन्हें ढूँढते थे हम
महफ़िल में आ गये हैं वो अपने नसीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीन का प्यार
नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीन का प्यार
क़ीमत नहीं चुकाई गई इक ग़रीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
तेरी वफ़ा की लाश पे ला मैं ही डाल दूँ
तेरी वफ़ा की लाश पे ला मैं ही डाल दूँ
रेशम का ये कफ़न जो मिला है रक़ीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से
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Dekha hai zindagi ko-Ek mahal ho sapno ka 1975
Artists: Dharmendra, Sharmila Tagore, Ashok Kumar
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