कभी न कभी कहीं न कहीं-शराबी १९६४
रफ़ी का गाया गीत राजेंद्र कृष्ण का लिखा हुआ है और इसकी
तर्ज़ बनाई है मदन मोहन ने.
गीत के बोल:
कभी न कभी कहीं न कहीं कोई न कोई तो आयेगा
अपना मुझे बनायेगा दिल में मुझे बसायेगा
कब से तन्हा ढूँढ राहा हूँ दुनिया के वीराने में
खाली जाम लिये बैठा हूँ कब से इस मयखाने में
कोई तो होगा मेरा साक़ी कोई तो प्यास बुझायेगा
कभी न कभी कहीं न कहीं कोई न कोई तो आयेगा
किसी ने मेरा दिल न देखा न दिल का पैग़ाम सुना
मुझको बस आवारा समझा जिसने मेरा नाम सुना
अब तक तो सबने ठुकराया कोई तो पास बिठायेगा
कभी न कभी कहीं न कहीं कोई न कोई तो आयेगा
कभी तो देगा सन्नाटे में प्यार भरी आवाज़ कोई
कौन ये जाने कब मिल जाये रस्ते में हमराज कोई
मेरे दिल का दर्द समझ कर दो आँसू तो बहायेगा
कभी न कभी कहीं न कहीं कोई न कोई तो आयेगा
अपना मुझे बनायेगा दिल में मुझे बसायेगा
कभी न कभी कहीं न कहीं कोई न कोई तो आयेगा
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Kabhi na kabhi kahin na kahin-Sharabi 1964
Artist: Dev Anand
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