क्या जानूं सजन-बहारों के सपने १९६७
सुनते हैं सन ६७ की फिल्म बहारों के सपने से. फिल्म का कथानक
रूटीन कथानकों से अलग ज़रूर है मगर फ़िल्मी मसाले इसमें भी हैं.
कथानक चाहे आज़ादी के संघर्ष का रहा हो या किसी व्यक्ति के जीवन
से संघर्ष का, उसमें प्रेम प्रसंग और गाने ज़रूर होंगे ऐसा हम हिंदी
फिल्मों की थ्योरी से समझ सकते हैं. ये कुछ ऐसा ही है जैसे दाल
में लहसुन का बघार ज़रूरी है(हींग के तो ज़माने लद गए).
सुनते हैं ये गीत जिसमें गायिका की आवाज़ को ओवेरलेप किया गया
है. दो ट्रेक अलग अलग रेकोर्ड कर के सुपरईम्पोज़ करना कह सकते
हैं. इस क्षेत्र का कोई ज्ञानी अगर अपने उदगार प्रकट करना चाहे तो
कमेन्ट बॉक्स का प्रयोग कर सकता है.
गीत के बोल:
आ आ आ आ आ आ
क्या जानूँ साजन होती है क्या ग़म की शाम
जल उठे सौ दिये जब लिया तेरा नाम
क्या जानूँ साजन होती है क्या ग़म की शाम
जल उठे सौ दिये जब लिया तेरा नाम
क्या जानूं साजन
काँटों में मैं खड़ी
नैनों के द्वार पे
निस दिन बहार के देखूँ सपने
काँटों में मैं खड़ी
नैनों के द्वार पे
निस दिन बहार के देखूँ सपने
चेहरे की धूल क्या
चंदा की चाँदनी
उतरी तो रह गई मुख पे अपने
क्या जानूँ साजन होती है क्या ग़म की शाम
जल उठे सौ दिये जब लिया तेरा नाम
क्या जानूं साजन
जबसे मिली नज़र
माथे पे बन गये
बिंदिया नयन तेरे देखो सजना
जबसे मिली नज़र
माथे पे बन गये
बिंदिया नयन तेरे देखो सजना
धर ली जो प्यार से
मेरी कलायियाँ
पिया तेरी उँगलियाँ हो गई कंगना
क्या जानूँ साजन होती है क्या ग़म की शाम
जल उठे सौ दिये जब लिया तेरा नाम
क्या जानूँ साजन होती है क्या ग़म की शाम
जल उठे सौ दिये जब लिया तेरा नाम
क्या जानूं साजन
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Kya janoon sajan-baharon ke sapne 1967
Artist: Asha Parekh
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