फ़लक़ मिलेगा तुझे क्या-घर घर में दीवाली १९५५
जाते रहेंगे. आम आमदी को इस बाबत कोई जानकारी नहीं
होती ऐसा क्यूँ होता है.
ये मोहब्बत है या मुहब्बत इस भाषाई मुरब्बे की चाशनी ने
हमें तरह तरह के स्वाद चखाये हैं. कैसे भी लिखो मतलब तो
एक ही है.
एक धीमी गति का युगल गीत सुनते हैं रफ़ी और लता का
गाया हुआ जिसके बोल इन्दीवर ने लिखे और संगीत तैयार
किया रोशन ने.
गीत के बोल:
फ़लक़ मिलेगा तुझे क्या हमें मिटाने से
ये मुहब्बत ना मिटेगी कभी ज़माने से
फ़लक़ मिलेगा तुझे क्या हमें मिटाने से
ये मुहब्बत ना मिटेगी कभी ज़माने से
उठा के रंज ये दिल चूर हो गया इतना
उठा के रंज ये दिल चूर हो गया इतना
के ठेस लगती है हाय
के ठेस लगती है कलियों के मुस्कुराने से
ये मुहब्बत ना मिटेगी कभी ज़माने से
जियें तो किसके लिये तुम ही जब नहीं अपने
तुम ही जब नहीं अपने
जियें तो किसके लिये तुम ही जब नहीं अपने
तुम ही जब नहीं अपने
के जी रहे थे हाय
के जी रहे थे अभी तक इसी बहाने से
ये मुहब्बत ना मिटेगी कभी ज़माने से
जहाँ ने कह दिया बादल हैं आसमानों के
जहाँ ने कह दिया बादल हैं आसमानों के
धुआँ उठा है ये हाय
धुआँ उठा है ये मेरे ही आशियाने से
ये मुहब्बत ना मिटेगी कभी ज़माने से
फ़लक़ मिलेगा तुझे क्या
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Falak milega tujhe kya-Ghar ghar mein diwali 1955
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