हम दम से गये-मंजिल १९६०
आपको एक उदाहरण देते हैं संधि विच्छेद का. शब्द का अर्थ
बदल जाता है. ‘पेटीकोट से भरी थी’ इस वाक्य का कोई भी
मतलब नहीं निकलता अधूरा सा लगता है. लेकिन इसे अगर
यूँ लिखा जाए ‘पेटी कोट से भरी थी’, कुछ अर्थ निकलता है
और वाक्य पूर्ण लगता है.
मंजिल का गीत सुनते हैं मन्ना डे का गाया हुआ जिसे लिखा
है मजरूह सुल्तानपुरी ने. संगीत है एस डी बर्मन का. सरल
शब्दों वाला गीत है मगर गूढ़ अर्थ है इसमें.
गीत के बोल:
हम दम से गये हमदम के लिये
हमदम की क़सम हमदम न मिला
दम से गये हमदम के लिये
हमदम की क़सम हमदम न मिला
दम से गये
फिर भी कहे जा तू अपना अफ़साना
साथी मिल जायेगा न रुक जाना
फिर भी कहे जा तू अपना अफ़साना
साथी मिल जायेगा न रुक जाना
ओ दिल तेरी कली अभी तो नहीं खिली
अभी वो मौसम न मिला
दम से गये हमदम के लिये
हमदम की क़सम हमदम न मिला
दम से गये
ऐ दिल चमका तू अपने दाग़ों को
रोशन किये जा बुझे चिराग़ों को
ऐ दिल चमका तू अपने दाग़ों को
रोशन किये जा बुझे चिराग़ों को
तू गाये जा मेरी जाँ ये दुनियाँ है यहाँ
किसी को मरहम न मिला
दम से गये हमदम के लिये
हमदम की क़सम हमदम न मिला
दम से गये
मोती ना मिले तो अश्क भरना है
दामन भरना तेरी तमन्ना है
मोती ना मिले तो अश्क भरना है
दामन भरना तेरी तमन्ना है
तो प्यारे तुझे खुशी अगर नहीं मिली
तो गम कुछ कम ना मिला
दम से गये हमदम के लिये
हमदम की क़सम हमदम न मिला
दम से गये हमदम के लिये
हमदम की क़सम हमदम न मिला
दम से गये
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Ham dam se gaye-Manzil 1960
Artist: Dev Anand
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