Dec 15, 2017

करा ले साफ़ करा ले-कैद १९७५

किसी भी संस्कृति में कुछ सेन्स वाली कृतियाँ होती हैं तो कई
सेन्सलेस कृतियाँ भी होती हैं. आदमी की अपने को पहचानने
वाली प्रवृत्ति के चलते वो अपने शरीर के सभी पुर्जों को पहचानने
की कोशिश करता है. इसी उपक्रम में उसने कब कान खुजाना
और उससे मैल निकालना शुरू किया ये शोध का विषय हो
सकता है. उसके लिए साधन भी जुटा लिए उसने. हाट बाजार
या मेले में लगने वाले बाजारों में आज भी आपको इसके लिए
बनाये गए औज़ार मिल जायेंगे. एक सेट आता है जिसमें जीभ,
दांत और कान साफ़ करने के औजार होते हैं और ये सेट
ताम्बे का बना होता है.

वैसे आधुनिक आयुष विज्ञानं या अंग्रेजी दवाई पद्धति अनुसार
कान साफ़ करने के ज़रूरत नहीं होती. वो जो मैल नाम का
कुछ कुछ होता है वो दरअसल वैक्स होता है जो कान के परदे
को सुरक्षा प्रदान करने का सामान होता है उसके अलावा परदे
के लिए डैम्पिंग का कार्य भी करता है. ये जब ज्यादा बन जाता
है तो अपने आप बाहर आ जाता है.




गीत के बोल:

करा ले साफ़ करा ले
मेरी जान साफ़ करा ले

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Kara le saaf kara le-Qaid 1975

Artists: Mehmood, Jayshri T

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