ज़रा सी आहट होती है-हकीक़त १९६४
मदन मोहन के संगीत वाली किसी दूसरी फिल्म के
कथानक में फिट किया जा सकता है. मेरा आशय
उन भूतिया फिल्मों से है जिनमें मदन मोहन का
संगीत है-वो कौन थी और मेरा साया टाइप की.
गीत में आहट, सोच, वो तो नहीं जैसे शब्द हैं तो
आगे अंतरे में छू गई जिस्म मेरा किसके दामन की
हवा जैसे शब्द हॉरर फिल्म के गीत के लिए बढ़िया
सामान हैं.
गीत के बोल:
ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
छुप के सीने में आ आ आ आ आ आ
छुप के सीने में कोई जैसे सदा देता है
शाम से पहले दिया दिल का जला देता है
है उसी की ये सदा है उसी की ये अदा
कहीं ये वो तो नहीं कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
शक्ल फिरती है हाँ हाँ हाँ
शक्ल फिरती है निगाहों में वो ही प्यारी सी
मेरी नस-नस में मचलने लगी चिंगारी सी
छू गई जिस्म मेरा किसके दामन की हवा
कहीं ये वो तो नहीं कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं कहीं ये वो तो नहीं
कहीं ये वो तो नहीं
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Zara si aahat hoti hai-Haqeeqat 1964
Artist: Priya Rajvansh
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