पुकारो मुझे फिर पुकारो-बुनियाद १९७२
में एक फिल्म आई थी-बुनियाद. फिल्म का नाम बहुत कम
दर्शकों को याद है. साल भर में इतनी फ़िल्में आती हैं-क्या
देखें और क्या ना देखें ये समस्या पहले भी थी और अब भी
है. अब तो सास बहू के ड्रामे के अलावा वेब सीरीज़ का भी
सरदर्द है.
यही हाल रहा तो थोड़े दिन में डबलरोटी और पिज़ा के ऊपर
भी फ़िल्मी सितारे ठुमके लगाते दिखलाई देंगे. लॉक डाउन
में भी अपना चेहरा और शरीर जनता को दिखलाने का लोभ
संवरण नहीं हो पा रहा है कईयों से. चड्डी बनियान और
पजामा पजामी में आड़े टेड़े स्टेप्स दिखा दिखा के जनता को
लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. इनमें से कुछ ही हैं जो आम
जनता की मदद के लिए आगे आये हैं और कुछ सार्थक कर
रहे हैं.
मीडिया की चों चों भौं भौं का सरदर्द, एक ही टॉपिक पर दिन
भर घिसा हुआ रिकॉर्ड बजाते न्यूज़ एंकर. इन सबसे फुर्सत
मिल तो सोशल मीडिया का सरदर्द. पहले सरदर्द लिमिट में
था तो सिर्फ एक सेरिडान और सरदर्द से आराम मिल जाता
था. अब तो पूरा दवाई का पत्ता खाने का समय आ गया है.
सुनते हैं आनंद बक्षी का लिखा हुआ गीत जिसकी धुन तैयार
की है लक्ष्मी प्यारे ने है और इसे गाया है किशोर कुमार संग
लता मंगेशकर ने.
गीत के बोल:
हो ओ ओ ओ ओ हो ओ ओ ओ ओ
ओ ओ ओ ओ ओ
पुकारो मुझे फिर पुकारो
पुकारो मुझे फिर पुकारो
मेरे दिल के आईने में ज़ुल्फ़ें आज सँवारो
पुकारो मुझे फिर पुकारो
पुकारो मुझे फिर पुकारो
मेरी ज़ुल्फ़ों के साये में आज की रात गुज़ारो
पुकारो मुझे फिर पुकारो
गुलशन में ऐसी छाँव ऐसी धूप नहीं
गुलशन में ऐसी छाँव ऐसी धूप नहीं
कलियों में ऐसा रंग ऐसा रूप नहीं
जो भी मेरे यार सा फूल कोई ले के आओ बहारों
पुकारो मुझे फिर पुकारो
चाँदनी की इस अँधेरे में ज़रूरत नहीं
चाँदनी की इस अँधेरे में ज़रूरत नहीं
कुछ सोचें कुछ देखें हमको फ़ुरसत नहीं
जाओ कहीं जा के छुप जाओ आज की रात सितारों
पुकारो
अपने ख़्वाबों की जो दुनिया बसायेंगे हम
अपने ख़्वाबों की जो दुनिया बसायेंगे हम
आसमानों से भी आगे निकल जायेंगे हम
साथ हमारे तुम चलना ए रंगीन नज़ारो
पुकारो मुझे फिर पुकारो
पुकारो मुझे फिर पुकारो……………………………………………………..
Pukaro mujhe phir pukaro-Buniyad 1972
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