Apr 13, 2020

सोचा था मैंने तो ए जान मेरी-चांदी सोना १९७७

यकीनन, मोती बहुमूल्य और नायाब रत्न है. सीपियों के
गर्भ में नवजात शिशु की तरह पले मोती की चमक के
आगे सब रत्न फ़ीके हैं. इसमें कुदरती चमक होती है.
मोती को चमकाने के लिये किसी ग्राइंडर पर घिसने की
ज़रूरत नहीं होती.

कवियों और शायरों ने इसे ऊंचा दर्ज़ा दिया है उसकी
एक वजह है जो ऊपर हमने बतलाई और दूसरी ये है
कि गहरे पानी में से इसे निकालना टेढ़ी खीर है.

अब तो तकनीकि और संसाधन बहुतेरे हो गए हैं जिनकी
मदद से नदी और समुद्र की गहराई की थाह ली जा
सकती है मगर कई ऐसे हिस्से बाकी हैं अभी भी इस
पृथ्वी के जहाँ तक मानव की पहुँच नहीं है. ये ना हो
तो ही अच्छा है. ना जाने क्या प्राकृतिक विपदा निकल
आये उसके दुस्साहस के कारण.

किशोर कुमार और आशा भोंसले का गाया हुआ युगल
गीत सुनते हैं फिल्म चांदी सोना से. आशिक़ अफ़सोस
जता रहा है अपनी मुफलिसी का. मुफलिसी पैसों की
ही नहीं, वरन संसाधनों और दिमाग की भी हुआ करती
है. वो इसमें तरह तरह की चीज़ें गिना रहा है जो वो
ला सकता है या कर सकता था. गीत में आशा भोंसले
की केवल एक पंक्ति है.

नायक की भावनाओं को मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने गीत
की मदद दी है.  नायिका जो काफी देर से सेमी-कंफ्यूज्ड
से स्टेट में है अन्तरा शुरू होते ही उसकी चेतना लौटती
है और वो ये देख के खुश होती है-अले ये तो मेले फेव्लेट
राजेश खन्ना वाले अंदाज़ में अपना सर हिला रहा है.



गीत के बोल:

सोचा था मैंने तो ए जान मेरी
मोतियों से भर दूँगा माँग तेरी
पर कुछ ना तुझे दे सका
इक मजबूर दिल के सिवा

सोचा था मैंने तो ऐ जान मेरी
मोतियों से भर दूँगा माँग तेरी
पर कुछ ना तुझे दे सका
इक मजबूर दिल के सिवा ओ

तड़पे दिल पलकों के पीछे कितने महल ख़्वाबों के लिये
तड़पे दिल पलकों के पीछे कितने महल ख़्वाबों के लिये
खिलते कभी तो महलों के दर जलते कभी अरमां के दिये
तू हंसती इक गुल की तरह मैं गाता बुलबुल की तरह

सोचा था मैंने तो ऐ जान मेरी
मोतियों से भर दूँगा माँग तेरी ओ

कब चाहा पर्बत बन जाना देता है जो सदियों का पता
कब चाहा पर्बत बन जाना देता है जो सदियों का पता
चाहूं बस इक पल का तराना बन के किसी ग़ुन्चे की सदा
खिल जाता इक पल ही सही धूल का फिर आँचल ही सही

सोचा था मैंने तो ऐ जान मेरी
मोतियों से भर दूँगा माँग तेरी ओ

फिर भी इस जलते सीने में अब तो यही अरमान पले
फिर भी इस जलते सीने में अब तो यही अरमान पले
चाँदी के सोने के ख़ज़ाने रख दूँ तेरे क़दमों के तले
उठता है तूफ़ान उठे लुटती है तो जान लुटे

आ ओ जानेमन ............... नहीं
मैं तेरे साथ हूँ तो फिर....
……………………………………………….
Socha tha maine to ae jaan meri-Chandi Sona 1977

Artusts: Sanjay Khan, Parveen Babi

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