कभी तो मिलेगी-आरती १९६२
प्रदीप कुमार एक दरिद्री कवि की भूमिका में हैं। उनको एक थोड़ी
सम्पन्न हमसफ़र के रूप में एक युवती(मीना कुमारी) मिलती है ।
अपनी स्तिथी का बखान करता युवक सहानुभूति के दो बोल अपने
हमदर्द से सुनता है और एक गीत बजना शुरू होता है नेपथ्य में ।
कहीं कोई रेडियो चालू करता है और ये गीत सुनाई पड़ता है। सटीक
समय पर प्रेरणादायक गीत सुनाई पढता है फिल्मों में। ऐसा हकीकत
में कभी कभार ही होता है। गीत है मजरूह का और इसकी धुन बनायीं है
रोशन ने।
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गाने के बोल:
कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी
बहारों की मंज़िल राही
बहारों की मंज़िल राही
कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी
बहारों की मंज़िल राही
बहारों की मंज़िल राही
लम्बी सही दर्द की राहें
दिल की लगन से काम ले
आँखों के इस तूफ़ाँ को पी जा
आहों के बादल थाम ले
दूर तो है पर, दूर नहीं है
दूर तो है पर, दूर नहीं है
नज़ारों की मंज़िल राही
बहारों की मंज़िल राही
आ हा हा, हा हा हा हा हा , ला ला, ला ला ला, हा हा
माना कि है गहरा अन्धेरा
गुम है डगर की चाँदनी
मैली न हो धुँधली पड़े न
देख नज़र की चाँदनी
डाले हुए है, रात की चादर
डाले हुए है, रात की चादर
सितारों की मंज़िल राही
बहारों की मंज़िल राही
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Kabhi to milegi-Aarti 1962
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