Jun 1, 2009

परी रे तू कहाँ की परी-उधार का सिन्दूर १९७६

बचपन में सभी ने परियों की कहानियां पढ़ी होंगी या सुनी होंगी ।
मनोरंजन एक समय में किस्से कहानियों तक सीमित था। कहानी
सुनने और देखने का जरिया टी वी और रेडियो बहुत बाद में बने।

इस गीत में रीना रॉय परी बनी हुई हैं और जीतेंद्र धरती पे रहना वाले
एक मेहनतकश किसान। दोनों के बीच संवाद का संगीतमय आदान
प्रदान चल रहा है ।

गायक स्वर हैं मुकेश और आशा भोंसले के । इस गीत को लिखा है
मजरूह सुल्तानपुरी ने और धुन बनाई है राजेश रोशन ने। ये गीत
मुकेश के गाये अंतिम गीतों में से एक है।




गीत के बोल:

जन्नत से आई पिया मैं तुझे लेने
शुक्रिया जी यहाँ मैं हूँ मज़े में
दुनिया है हमारी सितारों की दुनिया
मेरी भी दुनिया बहारों की दुनिया
रानी गगन की कहती है आ जा
मैं भी हूँ अपनी धरती का राजा
ए नादान तू क्या जाने
आ मेरे संग दीवाने
दिखलाऊँ अपना जहाँ

परी रे तू कहाँ की परी
धरती पे आई कैसे
कैसे कहूं लगन तेरी
यहाँ मुझे लायी कैसे
के जाने जहाँ
बंधी चली आई जैसे

हो ओ ओ , ओ ओ ओ
हा आ आ आ आ आ, हो हो ओ ओ ओ ओ ओ

मेरे जहाँ में भीगे मोती के महल हैं
मेरे जहाँ में भी तो यारों के दिल हैं
मस्ती में डूबी हवा मेरे चमन में
मेहनत की ख़ुशबू यहाँ की पवन में
अपनी ज़मीन है जन्नत हमारी
ठुकराओ ना यूँ चाहत हमारी
ना कर ये सीना तानी सुन ओ परियों की रानी
तू कहाँ और मैं कहाँ

कैसे कहूं लगन तेरी
यहाँ मुझे लायी कैसे

परी रे तू कहाँ की परी
धरती पे आई कैसे
के बोलो जी छबि बिखराई कैसे
.........................................................................
Pari re too kahan ki pari-Udhar ka sindoor 1976

Artists: Jeetendra, Reena Rai

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