एक रात में दो दो चाँद-बरखा १९५९
प्रचलित युगल गीत जो अक्सर रेडियो पर बजता है।
ये है फिल्म बरखा से जो १९५७ में आई थी। राजेंद्र
कृष्ण के लिखे गीत की धुन बनाई है चित्रगुप्त ने।
इस फिल्म के लिए राजेंद्र कृष्ण ने संवाद भी लिखे थे।
हिंदी फ़िल्मी गीतों में दो दो चाँद कुछ और गीतों में
भी खिले और चमके हैं, जानने के लिए पढ़ते रहिये.....
गीत के बोल:
एक रात में दो दो चाँद खिले
एक घूंघट में एक बदली में
एक रात में दो दो चाँद खिले
अपनी अपनी मंजिल से मिले
एक घूंघट में एक बदली में
एक रात में दो दो चाँद खिले
बदली का वो चाँद तो सबका है
घूंघट का ये चाँद तो अपना है
आ आ आ आ आ आ आ
बदली का वो चाँद तो सबका है
घूंघट का ये चाँद तो अपना है
मुझे चाँद समझने वाले बता
ये रात है या कोई सपना है
ये रात है या कोई सपना है
एक रात में दो दो चाँद खिले
एक घूंघट में एक बदली में
अपनी अपनी मंजिल से मिले
एक घूंघट में एक बदली में
एक रात में दो दो चाँद खिले
मालूम नहीं दो अनजाने
राही कैसे मिल जाते हैं
आ आ आ आ आ आ आ
मालूम नहीं दो अनजाने
राही कैसे मिल जाते हैं
फूलों को अगर खिलना है तो वो
वीरानों में खिल जाते हैं
वीरानों में खिल जाते हैं
एक रात में दुई दुई चाँद खिले
एक घूंघट में एक बदली में
अपनी अपनी मंजिल से मिले
एक घूंघट में एक बदली में
एक रात में दो दो चाँद खिले
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Ek raat mein do do chand-Barkha 1959
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