राह पे रहते हैं-नमकीन १९८२
एक छन्न सी आवाज़ आती है तत्पश्चात लम्बी से ख़ामोशी
मानो कोई नया गीत शुरू होने वाला हो। क्षणों के लिए हम खो
जाते हैं और फिर एक ट्रोले के गर्जना भरे होर्न से हमारी तन्द्रा
भंग होती है। हम हाई-वे पर खड़े हैं और एक रूपये का सिक्का
जेब से निकल कर पतरे की बनी टेबल पर जा गिरा है। ये टेबल एक
ढाबे के बाहर पड़ी है जहाँ हम चाय पी रहे हैं। चाय पीते पीते एक गीत
याद आता है जो सफ़र से सम्बंधित है। फिल्म नमकीन का ये गीत
संजीव कुमार पर फिल्माया गया है जिसमे वे एक ट्रक में सफ़र कर
रहे हैं। संजीव कुमार को गुलज़ार की दो फिल्मों में हमने चाय पीते
देखा मौसम और नमकीन। गेरुलाल नाम का ये ट्रक ड्राईवर घुमावदार
सड़कों पर कैसी द्रिविंग करता है जानने के लिए देखें ये नमकीन गीत।
गीत के बोल:
हो, राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते है
खुश रहो एहले वतन हम तो सफ़र करते है
राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते है
खुश रहो एहले वतन हम तो सफ़र करते है
हाँ,जल गए जो धूप में तो साया हो गए
जल गए जो धूप में तो साया हो गए
आसमान का कोई कोना, थोडा सो गए
जो गुजर जाती हैं बस, हो, उस पे गुजर करते है
राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते है
खुश रहो एहले वतन हम तो सफ़र करते है
हो, उड़ते पैरो के तले जब बहती हैं जमीन
उड़ते पैरो के तले जब बहती हैं जमीन
मुड के हमने कोई मंजिल देखी ही नहीं
रात दिन राहों पे हम हो, शाम-ओ-सहर करते है
राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते है
खुश रहो एहले वतन हो, हम तो सफ़र करते है
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