Oct 31, 2009

इस मोड़ से जाते हैं-आंधी १९७५

यार ये नशेमन किस शहर का नाम है। गाने की धुन बनाते वक़्त
संगीतकार राहुल देव बर्मन ने गीतकार गुलज़ार से यही प्रश्न किया
था। इस वाकये को गुलज़ार अपनी आवाज़ में बयां कर चुके हैं एक
गीतों के संग्रह में जिसमे वो अपने मित्र राहुल देव बर्मन को याद
करते हैं। थोडा लीक से हटकर शब्दों के इस्तेमाल के लिए ही
गुलज़ार जाने जाते हैं । उन्होंने नाम भी अपना लीक से हटकर
ही रखा है । ' सम्पूरण सिंह' से गुलज़ार बन गए वे ।

ये गीत, जिसके बारे में ज्यादा कहने की आवश्यकता नहीं,
फिल्म आंधी से है जो १९७५ में आई थी। इस गीत की तारीफ़ में
आपको इन्टरनेट के ऊपर कमसे कम २०० से अधिक पन्ने मिल
जायेंगे । इस गीत का सबसे श्रवणीय हिस्सा इसके पहले अंतरे के
पहले का संगीत है, जिसकी वजह से ये गाना मीलों दूर से भी
पहचाना जा सकता है। बांसुरी और एक तार- वाद्य के प्रयोग वाला ये
टुकडा खूबसूरत है। उस तार वाद्य को पहचानने में मेरी मदद कीजिये ।



गाने के बोल:

इस मोड़ से जाते हैं
इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त क़दम रस्ते, कुछ तेज़ क़दम राहें
कुछ सुस्त क़दम रस्ते, कुछ तेज़ क़दम राहें
पत्थर की हवेली को, शीशे के घरौंदों में
तिनकों के नशेमन तक, इस मोड़ से जाते हैं

आ, आ, इस मोड़ से जाते हैं

आंधी की तरह उड़कर इक राह गुज़रती है
आंधी की तरह उड़कर इक राह गुज़रती है
शर्माती हवी कोई क़दमों से उतरती है
इन रेशमी राहों में इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुँचती है इस मोड़ से जाती है

इस मोड़ से जाते हैं ........

इक दूर से आती है पास आ के पलटती है
इक दूर से आती है पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी, रुकती है न चलती है
ये सोच के बैठी हूँ , इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुँचती है, इस मोड़ से जाती है

इस मोड़ से जाते हैं
इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त क़दम रस्ते कुछ तेज़ क़दम राहे
पत्थर की हवेली को शीशे के घरौंदों में
तिनको के नशेमन तक इस मोड़ से जाते हैं
आ आ, इस मोड़ से जाते हैं
...............................................................
Is mod se jaate hain-Aandhi 1975

Artists: Sanjeev Kumar, Suchitra Sen

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