Nov 28, 2009

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए-समुन्दर १९५७

मदन मोहन के बनाये और लता के गाये गीतों की चर्चा सबसे
ज्यादा हुई मगर मदन मोहन को और उनके वंशजों को हमेशा
शिकायत रही कि मदन मोहन को वो सम्मान नहीं मिला जिसके
वो हकदार थे। व्यावसायिक जगत में "क्लास" और "मास" दोनों
का ध्यान रखना पड़ता है। गीत ऐसे हों जो कठिन रागों पर बने होने
के बावजूद गुनगुनाये जा सकें। जब जब मदन मोहन ने ऐसे गीत
बनाये वो सब लोकप्रिय हुए। आज एक ऐसे गीत का जिक्र होगा जो कि
मधुर गीत है, मगर आम आदमी इसको आसानी से गुनगुना नहीं सकता।
इसका आनंद केवल सुनकर उठाया जा सकता है। वैसे इस गीत को मैं
आसानी से गुनगुना लेता हूँ क्यूंकि इसे इतनी बार सुन लिया है कि याद
हो चुका है । फ़िल्म वाला गीत सी डी, केसेट में उपलब्ध गीत से थोड़ा अलग है।
इस फ़िल्म में प्रेमनाथ और बीना राय प्रमुख कलाकार हैं और ये गीत बीना राय
पर फिल्माया गया है। दर्द वाला आवश्यक तत्त्व-वायलिन इस गीत में है। ये
एक टॉप क्लास गीत है इसमे संदेह की रत्ती भर गुंजाईश नहीं। राजेंद्र कृष्ण ने
भी तबियत से इसे लिखा है ।



गीत के बोल:

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए
सजनवा हो, बलमवा हो

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए
सजनवा हो, बलमवा हो

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए

लहरें किनारे से बिछड़ गयीं ऐसे
लहरें किनारे से बिछड़ गयीं ऐसे
नज़रों से दूर तुम हो गए पिया जैसे
हो गए पिया जैसे

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए
सजनवा हो, बलमवा हो

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए
पतझड आई, छाई उदासी
प्रीत कमल मुरझाये
पास नहीं जब तुम ही बालम मन कैसे मुस्काए
मन कैसे मुस्काए

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए
सजनवा हो, बलमवा हो

आऊँ तो आऊं पिया कैसे मैं आऊं
आऊँ तो आऊं पिया कैसे मैं आऊं
तेरे मिलन की राह न पाऊँ
राह न पाऊँ

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए
सजनवा हो, बलमवा हो

चैन नहीं आए कहाँ दिल जाए

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