उलझन सुलझे ना -धुंध १९७३
संक्षिप्त जीवनी पढ़ रहा था। उसमे एक सटीक टिप्पणी की हुई
है जीनत अमान के बारे में-"जीनत अमान ने सिनेमा में नारी
के चित्रण में आमूल-चूल परिवर्तन करा दिए "। काफ़ी हद तक
सही है। इसके अलावा भी कुछ है जिसका जिक्र हमें अवश्य
करना चाहिए। वो है फैशन में बदलाव । सही मायने में ५० के
दशक की बड़ी बड़ी आँखों वाली सुंदरी नलिनी जयवंत अगर हिन्दी
सिनेमा की पहली फैशन क्वीन थी तो जीनत अमान दूसरी।
जीनत अमान अपनी स्क्रीन प्रेसेंस के लिए जानी जाती थीं।
सारे छायाकार उनसे खुश रहते थे-वजह उनके चित्र बहुत ही
सहज और स्वाभाविक होते थे। ये बात स्थिर-चित्र और चलचित्र
दोनों पर सामान रूप से लागू है।
उसके अलावा बॉलीवुड में बदलाव लाने वाली अभिनेत्रियाँ बहुत
कम हैं। ढर्रे पर चलने वाले नाम बहुत से हैं। इस पीड़ी से
प्रिटी जिंटा एक नाम है जिसने बॉलीवुड में अलग सी हलचल
मचाई।
आइये वापस गीत कि ओर चलें जो प्रस्तुत होने जा रहा है
इधर। ये फ़िल्म धुंध से है। इसमे जीनत ने एक अजीब सी
मानसिक दशा वाले अपाहिज रईस की पत्नी कि भूमिका निभाई
है। बी आर चोपड़ा ने एक उत्तम फ़िल्म बनाई है जिसमे सभी
कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया है। डैनी डेंगजोप्पा ने इसमे
अविस्मर्णीय भूमिका निभाई है। हिन्दी सिनेमा के सबसे अच्छे
कलाकारों में उनका नाम इतिहास में हमेशा आदर से लिया
जाएगा। इस गीत के बोल लिखे हैं साहिर लुधियानवी ने और
धुन बनाई है रवि ने और गीत गाया हैं आशा भोंसले ने ।
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गाने के बोल:
उलझन सुलझे ना
रास्ता सूझे ना
जाऊं कहाँ मैं
जाऊं कहाँ
उलझन सुलझे ना
रास्ता सूझे ना
जाऊं कहाँ मैं
जाऊं कहाँ
मेरे दिल का अँधेरा
हुआ और अँधेरा
कुछ समझ ना पाऊँ
क्या होना है मेरा
मेरे दिल का अँधेरा
हुआ और अँधेरा
कुछ समझ ना पाऊँ
क्या होना है मेरा
खड़ी दोराहे पर
ये पूछूं घबरा कर
खड़ी दोराहे पर
ये पूछूं घबरा कर
जाऊं कहाँ मैं
जाऊं कहाँ
उलझन सुलझे ना
रास्ता सूझे ना
जाऊं कहाँ मैं
जाऊं कहाँ
जो साँस भी आए
तन चीर के जाए
इस हाल से कोई
किस तरह निभाए
जो साँस भी आए
तन चीर के जाए
इस हाल से कोई
किस तरह निभाए
ना मरना रास आया
ना जीना मन भाया
ना मरना रास आया
ना जीना मन भाया
जाऊं कहाँ मैं
जाऊं कहाँ
उलझन सुलझे ना
रास्ता सूझे ना
जाऊं कहाँ मैं
जाऊं कहाँ
रुत गम की टले ना
कोई आस फले ना
तकदीर के आगे
मेरी पेश चले ना
रुत गम की टले ना
कोई आस फले ना
तकदीर के आगे
मेरी पेश चले ना
बहुत की तदबीरें
ना टूटी जंजीरें
बहुत की तदबीरें
ना टूटी जंजीरें
जाऊं कहाँ मैं
जाऊं कहाँ
उलझन सुलझे ना
रास्ता सूझे ना
जाऊं कहाँ मैं
जाऊं कहाँ
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Uljha suljhe na-Dhundh 1973
2 comments:
धन्यवाद
पोस्ट बहुत पसंद आई
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