तेरे सुर और मेरे गीत -गूँज उठी शहनाई १९५९
विजय भट्ट ने दो महान फ़िल्में दी हैं बॉलीवुड को। ये हैं- बैजू बावरा
और गूँज उठी शहनाई । उसके पहले राम राज्य उनकी बहुत चर्चित
फ़िल्म रही जो सन १९४३ में आई थी । सिनेमा के माध्यम पर उनकी
पकड़ ज़बरदस्त थी। जिन्होंने फ़िल्म 'हरियाली और रास्ता' देखी है
(मनोज कुमार वाली) वे इस बात से जरूर सहमत होंगे की उनकी
फिल्मों में संगीत पक्ष मजबूत रहा है। चाहे पौराणिक, ऐतिहासिक
फ़िल्में हों या सामाजिक उन्होंने साधिकार अपने कला कौशल को
प्रदर्शित किया है। जिन दो फिल्मों का जिक्र मैंने ऊपर किया है ,
विजय भट्ट उनके निर्माता और निर्देशक भी थे। दोहरी भूमिका
निभाना कोई आसान काम नहीं । कला पक्ष और वाणिज्य दोनों को
साधना बहुत कम हस्तियों को नसीब हुआ है हिन्दी फ़िल्म जगत में।
यश चोपड़ा उनमे से एक हैं।
गूँज उठी शहनाई एक महाकाव्य है जिसमे भारत व्यास के गीत और
वसंत देसाई का संगीत है। इसके गीत सदाबहार और गहरी छाप
छोड़ने वाले हैं। शहनाई उस्ताद बिस्मिल्ला खान की शहनाई की
आवाज़ से से समृद्ध ये फ़िल्म 'क्लासिक' की श्रेणी से भी ऊपर स्थान
रखती है। ये गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में है और उनके सर्वश्रेष्ठ
गीतों में से एक है। इस गीत के बोल सरल से हैं और फिल्मांकन भी
इसका सीधा सरल है। सादगी कभी कभी ज्यादा खूबसूरत नज़र आती
है। अभिनेत्री अमिता और राजेंद्र कुमार वो कलाकार हैं जो इसमे आपको
परदे पर दिखाई देंगे।
गाने के बोल:
तेरे सुर और मेरे गीत
दोनों मिलकर बनेगी प्रीत
तेरे सुर और मेरे गीत
दोनों मिलकर बनेगी प्रीत
धड़कन में तू है समाया हुआ
ख्यालों में तू ही तू छाया हुआ
हाँ आ ,धड़कन में तू है समाया हुआ
ख्यालों में तू ही तू छाया हुआ
दुनिया के मेले में लाखों मिले
मगर तू ही तू दिल को भय हुआ
मैं तेरी जोगन तू मेरा मीत,
दोनों मिलकर बनेगी प्रीत
तेरे सुर और मेरे गीत
मुझको अगर भूल जाओगे तुम
मुझसे अगर दूर जाओगे तुम
हाँ आ,मुझको अगर भूल जाओगे तुम
मुझसे अगर दूर जाओगे तुम
मेरी मोहब्बत में तासीर है
मेरी मोहब्बत में तासीर है
तो खिंचके मेरे पास आओगे तुम
देखो हमारी होगी जीत
दोनों मिलकर बनेगी प्रीत
तेरे सुर और मेरे गीत
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