क्या सोच रहा रे-मेला १९७२
इस गीत को सर्वप्रथम मैंने दूरदर्शन के कार्यक्रम चित्रहार में देखा था।
तभी से मैं इस गाने का मुरीद हूँ। मुमताज़ के भाव इस गाने में गज़ब के हैं।
ये उस दौर की फ़िल्म है जब मुमताज़ बी ग्रेड की फिल्मों की हिरोइन के लेबल
से निकलकर शीर्ष की अभिनेत्रियों में शामिल हो गई थी। डाकुओं के विषय पर
बनी फ़िल्म मेला में कई मधुर गीत हैं। फ़िल्म ज्यादा नहीं चली मगर इसके
गीत बजते रहे नियमित रूप से। ये गीत थोड़ा कम बजा इसलिए इसको सबसे
पहले इस ब्लॉग पर शामिल कर रहा हूँ। नायक हैं संजय खान मुमताज़ के
साथ, इस गीत में। बोल मजरूह सुल्तानपुरी के हैं, गायिका लता मंगेशकर हैं
और संगीत है राहुल देव बर्मन का.
गाने के बोल:
जा ना
जा जा
का रे बाबू
क्या सोच रहा रे
हाँ, क्या सोच रहा रे
जा ना, जा जा ना
ले जा मेरा प्यार तेरे काम आएगा
क्या सोच रहा रे
सोच रहा रे
जा ना, जा जा ना
ले जा मेरा प्यार तेरे काम आएगा
तुझे सहर जाना है, रंगीली गलियों में
भंवर बन के घूमेगा कागज़ की कलियों में
तुझे सहर जाना है, रंगीली गलियों में
भंवर बन के घूमेगा कागज़ की कलियों में
लेगी दिल बातों ही बातों में कोई सहरी गुडिया
फ़िर जिस दिन चुपके से चल देगी वो उड़ती चिडिया
उसी दिन तेरे मुख पे मेरा ही नाम आएगा
सोच रहा रे
हाँ, क्या सोच रहा रे
जा ना, जा जा ना
ले जा मेरा प्यार तेरे काम आएगा
मोहे पता इतना है ओ रे बनके छैला
तन के उजले लोगों से जब होगा मन मैला
फ़िर बेकल हो हो के रो रो के बीतेंगी रतियाँ
सोऊँगी रे मैं तो, सोचेगा तू मेरी बतियाँ
मेरा नहीं रे पहले तेरा सलाम आएगा
सोच रहा रे
हाँ, क्या सोच रहा रे
जा ना, जा जा ना
ले जा मेरा प्यार तेरे काम आएगा
क्या सोच रहा रे
जा ना, जा जा ना
ले जा मेरा प्यार तेरे काम आएगा
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