सुध बिसर गई आज-संगीत सम्राट तानसेन १९६२
१९६२ का साल भी काफ़ी समृद्ध वर्ष रहा फ़िल्म संगीत के क्षेत्र में। एक और
गुणी संगीतकार जो आखिरी के वर्षों में केवल धार्मिक और पौराणिक फिल्मों तक
सिमट कर रह गए वो हैं- एस एन त्रिपाठी जिनका पूरा नाम श्रीनाथ त्रिपाठी है।
इस फ़िल्म के निर्देशक भी वे स्वयं हैं।
संगीत सम्राट तानसेन फ़िल्म को वो प्रशंसा नहीं मिली दर्शकों की, जो इसी विषय
पर बनी फ़िल्म बैजू बावरा को प्राप्त हुई, हालांकि फ़िल्म बैजू बावरा में तानसेन के
ऊपर दृश्य कम थे। एक तुलना जैसी बात हो जाती है जब भी उसी विषय पर बाद
में फ़िल्म आती है। अनारकली फ़िल्म और मुग़ल ऐ आज़म का अलग रहा। दोनों ही
हिट फ़िल्में रही । अनारकली पहले आई और मुग़ल ऐ आज़म बाद में , लेकिन बाद
में आई फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान बना दिए। फ़िल्म में एक कारक नहीं
वरन कई कारण होते हैं उसको सफल बनने में। एक भी अवयव कहीं कमज़ोर रह
जाए तो वो तकलीफ देता है। कई अच्छी अच्छी फ़िल्में केवल बेकार संपादन की वजह
से पिट गयीं।
ये जो गीत है इसमे भारत भूषण आपको नज़र आयेंगे। भारत भूषण को फ़िल्म
बैजू बावरा से अपार प्रसिद्धि हासिल हुई थी। बैजू बावरा फिल्म में उन्होंने बैजू का
किरदार निभाया था । इस गीत को गाया है मन्ना डे और रफ़ी ने। बोल लिखे हैं
शैलेन्द्र ने जिन्होंने फ़िल्म के अनुरूप बढ़िया लेखन किया है।
"हर राग में पीर है किसके मन की ?"
गीत के बोल:
सुध बिसर गई आज
अपने गुनन की
सुध बिसर गई आज
अपने गुनन की
आई गई बात बीते दिनन की
सुध बिसर गई आज
अपने गुनन की
बिखरे सपन सारे विघ्ना से हम हारे
बिखरे सपन सारे विघ्ना से हम हारे
आंसुओं में डूबी हैं पलकें नयन की
पलकें नयन की
सुध बिसर गई आज
अपने गुनन की
जियरा के दो टूट, गयी प्रेरणा रूठ
जियरा के दो टूट, गयी प्रेरणा रूठ
घुट घुट गई सूख
सरिता सुरन की
सरिता सुरन की
हा आ आ, सुध बिसर गई आज
अपने गुनन की
आई गई बात बीते दिनन की
सुध बिसर गई आज
ध नि सा म, म ग म ध, ध म ध स
नि स ग, स नि स नि, ध नि ध, म ध म
ग म ध म ध नि स नि ध प म,
नि ध प म, नि ध प म
सुध बिसर गई आज
अपने गुनन की
हाय रे कलाकार जाने न संसार
हर राग में पीर है किसके मन की
हर राग में पीर है किसके मन की
हाय, किसके मन की
सुध बिसर गई आज
अपने गुनन की
सुध बिसर गयी आज
अपने गुनन की
आ ही गयी बात बीते दिनन की
सुध बिसर गयी
आज अपने गुनन की
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Sudh bisar gayi-Sangeet Samrat Tansen 1962
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