सिमटी हुई ये घड़ियाँ-चम्बल की कसम १९७९
लता और रफ़ी का गाया हुआ एक समय के बंधन से मुक्त ,
मधुर युगल गीत।
फिल्म: चम्बल की कसम
वर्ष: १९७९
गीतकार: साहिर लुधियानवी
संगीतकार: खय्याम
कलाकार: राजकुमार, मौसमी चटर्जी
गीत के बोल:
सिमटी हुई यह घड़ियाँ, फिर से ना बिखर जाएँ
फिर से ना बिखर जाएँ
इस रात में जी ले हम, इस रात में मर जाएँ
इस रात में मर जाएँ
सिमटी हुई यह घड़ियाँ
अब सुबह ना आ पाए, आओ यह दुआ मांगें
अब सुबह ना आ पाए, आओ यह दुआ मांगें
इस रात के हर पल से,
रातें ही उभर जाएँ
रातें ही उभर जाएँ
सिमटी हुई यह घड़ियाँ
दुनिया की निगाहें अब हम तक ना पहुँच पायें
दुनिया की निगाहें अब हम तक ना पहुँच पायें
तारों में बसें चल कर,
धरती में उतार जाएँ
धरती में उतार जाएँ
सिमटी हुई यह घड़ियाँ
हालात के तीरों से, छलनी है बदन अपने
हालात के तीरों से, छलनी है बदन अपने
पास आओ के सीनों के
कु्छ ज़ख्म तो भर जाएँ
कु्छ ज़ख्म तो भर जाएँ
सिमटी हुई यह घड़ियाँ
आगे भी अँधेरा है, पीचे भी अँधेरा है
आगे भी अँधेरा है, पीचे भी अँधेरा है
अपनी हैं वो ही सांसें,
जो साथ गुज़र जाएँ
जो साथ गुज़र जाएँ
सिमटी हुई यह घड़ियाँ
…ये घड़ियाँ….फिर से….
सिमटी हुई…
बिछड़ी हुई रूहों का, ये मेल सुहाना है
बिछड़ी हुई रूहों का, ये मेल सुहाना है
इस मेल का कुच्छ एहसान, जिस्मों पे भी कर जाएँ
जिस्मों पे भी कर जाएँ
सिमटी हुई यह घड़ियाँ
तरसे हुए जज्बों को अब और ना तरसाओ
तरसे हुए जज्बों को अब और ना तरसाओ
तुम शाने पे सर रख दो,
हम बाँहों में भर जाएँ
हम बाँहों में भर जाएँ
सिमटी हुई यह घड़ियाँ
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