जे हम तुम चोरी से-धरती कहे पुकार के १९६९
मुझे बहुत पसंद है। मजरूह का लिखा ये गीत परदे पर गा रहे हैं
नंदा और जीतेंद्र फिल्म 'धरती कहे पुकार के' में । इस फिल्म का गीत
देख के लगता है की नयज जीतेंद्र ८० के दशक में ज्यादा तेज़ नृत्य
किया करते थे। इस गीत में देसी बोली की खुशबू डाली है गीतकार
मजरूह सुल्तानपुरी ने। आम संगीत प्रेमी जिसे किस कलाकार ने
क्या खाया क्या पिया से मतलब नहीं होता वो ऐसे गीतों को पसंद
करता है. यह गीत ज्यादा बजने वाले युगल गीतों में अपना स्थान
शीर्ष के गीतों में रखता है. गौर तलब है प्रबुद्ध किस्म के संगीत
समीक्षक लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को वो सम्मान नहीं देना चाहते जो
उन्होंने कुछ गिनती के संगीतकारों को दिया है, देते आये हैं और
देते रहेंगे. खैर इस गीत को वे ख़ारिज नहीं कर सकते क्यूंकि इससे
कम से कम एक नामचीन शायर और गीतकार का नाम जुड़ा है.
गीत के बोल:
जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
अरे ई बंधन है प्यार का
जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
कजरा वाली फिर तू ऐसे काहे निहारे
कजरा वाली फिर तू ऐसे काहे निहारे
ई चितवन के गोरी माने तो समझा जा रे
मतलब्वा एक है, एक है, नैनन पुकार का
जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
हो, जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
देखो बादर आये पवन के पुकारे
देखो बादर आये पवन के पुकारे
उल्फत मेरी जीती अनाड़ी पिया हारे
आएगा रे मजा, रे मजा, अब जीत हार का
जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
हो, जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
घूंघट में से मुखड़ा दिखे अभी अधूरा
घूंघट में से मुखड़ा दिखे अभी अधूरा
आ बैयाँ में आजा मिलन तो हो पूरा
ई मिलना तो नहीं, तो नहीं, कुछ एक बार का
जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
अरे ई बंधन है प्यार का
हो, जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से
जइयो कहाँ ए हजूर
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Je hum tum chori se-Dharti kahe pukar ke 1969
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