Mar 8, 2010

रुला के गया सपना मेरा-ज्वेल थीफ १९६७

फिल्म गाईड के सफल संगीत के बाद विजय आनंद गीतकार
शैलेन्द्र से फिल्म 'ज्वेल थीफ' के गाने भी लिखवाना चाहते थे।
फिल्म तीसरी कसम गीतकार शैलेन्द्र के लिए दु:स्वप्न ही
साबित हुई। फिल्म निर्माण के दौरान जो कडवे अनुभव उन्हें
हुए उसकी वजह से उनके भीतर का संवेदनशील गीतकार बुरी
तरह से आहत हुआ। शैलेन्द्र से गीत लिखवाने के लिए विजय
आनंद ने उनके घर के कई चक्कर काटे और वे इस इंतज़ार में
रहते कि शैलेन्द्र से मुलाकात हो। आखिर एक दिन शैलेन्द्र ने
गोल्डी से कह दिया कि उनकी लिखने की इच्छा मर चुकी है। शैलेन्द्र
के सुझाव पर मजरूह सुल्तानपुरी से फिल्म के बाकी गीत
लिखवाए गए।


फिल्म 'ज्वेल थीफ' के लिए गीतकार शैलेन्द्र ने केवल एक ही
गीत लिखा और आप महसूस कर सकते हैं वो पीड़ा जो गीतकार
के दिल के अन्दर थी, इस गीत की पंक्तियों के द्वारा। इस गीत के
लिए सचिन देव बर्मन ने भी एक मर्मस्पर्शी धुन बना के इसको
अमर कर दिया। गायिका हैं लता मंगेशकर जिनके सर्वश्रेष्ठ गीतों
में इसकी गिनती की जाती है। गीत फिल्माया गया है नायिका
वैजयंतीमाला पर। गीत का फिल्मांकन बढ़िया है और आपको
गीत के अंत तक बांधे रखता है। फिल्म के सभी गीत उत्तम कोटि
के हैं और सभी रंगों वाले हैं.




गाने के बोल:

रुला के गया सपना मेरा
रुला के गया सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा,

रुला के गया सपना मेरा

वो ही है ग़म-ए-दिल, वो ही है चंदा, तारे
हाय, वो ही हम बेसहारे
वो ही है ग़म-ए-दिल, वो ही है चंदा, तारे
हाय, वो ही हम बेसहारे
आधी रात वही है, और हर बात वही है
फिर भी न आया लुटेरा,

रुला के गया सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा
रुला के गया सपना मेरा

कैसी ये ज़िंदगी, के साँसों से हम, ऊबे
हाय, के दिल डूबा हम डूबे
कैसी ये ज़िंदगी, के साँसों से हम, ऊबे
हाय, के दिल डूबा हम डूबे
एक दुखिया बेचारी, इस जीवन से हारी
उस पर ये ग़म का अन्धेरा,

रुला के गया सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा
रुला के गया सपना मेरा

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