गोरी के हाथ में-मेला १९७२
ग्रामीण पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्में समय समय पर अवतरित हुईं हमारे सिनेमा हाल
में। गाँव के मेले को आकर्षक बनाने के लिए एक आध हीरो हीरोइन की ज़रुरत ज़रूर
पड़ती है। ये गीत है फिल्म मेला से । फिल्म ठीक ठाक थी मगर उल्लेक्नीय फिल्मों
की सूची में शामिल नहीं की जाती। गीत की खूबी इसकी धपर- धिपिर टपर- टिपिर
वाली थाप है। नृत्य में आपको देसीपन का आभास अवश्य होगा। संजय खान और
मुमताज़ पर फिल्माया गया गीत गाया है लता और रफ़ी ने। इसकी धुन बनायीं है
राहुल देव बर्मन ने। मजरूह सुल्तानपुरी ने इसके बोल लिखे हैं। मटकों-चटको
डांस करने के लिए धुन उपयुक्त है। सेट पर सजी दुकान के ऊपर जो बोर्ड लगा है
वो अवश्य गौर करने लायक है-सुगन्धित भण्डार। आपने अभी तक सुगंधी भण्डार या
सुगंध भंडार नाम सुने होंगे मगर यहाँ तो पूरी दुकान ही सुगन्धित है।
गीत के बोल:
गोरी के हाथ में
जैसे ये छल्ला
वैसी हो किस्मत
मेरी भी अल्लाह
गोरी के हाथ में
जैसे ये छल्ला
वैसी हो किस्मत
मेरी भी अल्लाह
छूने न दूँगी ऊँगली मैं बाबू
बन जाओ चाहे चांदी का छल्ला
छूने न दूँगी ऊँगली मैं बाबू
बन जाओ चाहे चांदी का छल्ला
जा रे जा रे
हाथ को हमारे, हाथ लगा न
हो, दिल्लगी न समझना
कोई लुटे कोई मर मिटे
जग हो दीवाना
हो, मैं जो बनूँ तेरा गहना
तू जो बने गहना संवारना छोड़ दूं
मोहे तू सजाये तो दरपन तोड़ दूं
हो, ऐसा गुस्सा भई रे वल्लाह
गोरी के हाथ में
जैसे ये छल्ला
वैसी हो किस्मत
मेरी भी अल्लाह
छूने न दूँगी
छूने न दूँगी
ऊँगली मैं बाबू
ऊँगली मैं बाबू
बन जाओ चाहे चांदी का छल्ला
चाहूँ तुझे डोली में बिठा के कहीं ले जाऊं
ऐ हाय सोच में पड़ गई क्या
जो मैं तेरी दुलहनिया बनूँ घूँघट जला दूं
ओ हाय ये मैं कह गई क्या
जो मैं चाहूँ रे तू भी वो ही चाहे
फिर तू ज़ालिम सताए मुझे काहे
हो जा जा इतना तू न चिल्ला
छूने न दूँगी ऊँगली मैं बाबू
बन जाओ चाहे चांदी का छल्ला
गोरी के हाथ में
गोरी के हाथ में
जैसे ये छल्ला
जैसे ये छल्ला
वैसी हो किस्मत
मेरी भी अल्लाह
छूने न दूँगी
छूने न दूँगी
ऊँगली मैं बाबू
ऊँगली मैं बाबू
बन जाओ चाहे चांदी का छल्ला
0 comments:
Post a Comment