जैसे को तैसा मिला-जैसे को तैसा १९७३
ये फिल्म का शीर्षक गीत है। हंटर से पिटाई करते वक़्त भी सधी
आवाज़ में गीत गाया जा सकता है। हिंदी फिल्म का नायक सब
कुछ कर सकता है। ये कुछ कुछ ज्योमेट्री की थेओरम की तरह है।
पीटने वाला कलाकार जीतेंद्र है और पिटने वाला कलाकार रमेश देव।
गीत किशोर ने गाया है और संगीत आर. डी. बर्मन ने दिया है। गीत
में जो फ़िल्मी मकान है उसकी सीढियां जानी पहचानी सी हैं और इसे
आप कई फिल्मों में देख चुके होंगे। गीत में हंटर की आवाज़ के लिए
जो प्रभाव इस्तेमाल किया गया है उसको सुन कर लगता है कि सर्प
की फुफकार और हंटर की आवाज़ में ज्यादा फर्क नहीं है। इस गीत
को 'रीयल एक्शन सोंग' कहा जा सकता है ।
गीत के बोल:
जैसे को तैसा मिला
कैसा मज़ा आया
मारूं कि छोडूं, तेरी टांगें तोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
जैसे को तैसा मिला
कैसा मज़ा आया
मारूं कि छोडूं, तेरी टांगें तोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
जैसे को तैसा मिला
कैसा मज़ा आया
मारूं कि छोडूं, तेरी टांगें तोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
मुजरिम तेरा नाम है
तुझपे ये इलज़ाम है
सीधे साधे भले लोगों को
सताना तेरा काम है
मुजरिम तेरा नाम है
तुझपे ये इलज़ाम है
सीधे साधे भले लोगों को
सताना तेरा काम है
ये खता है तेरी ये सजा है तेरी
तू आगे आगे, तो मैं पीछे दौदूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
जैसे को तैसा मिला
कैसा मज़ा आया
मारूं कि छोडूं, तेरी टांगें तोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
कुछ जानते वो नहीं
पहचानते वो नहीं
लातों के जो भूत होते हैं
बातों से तो वो मानते नहीं
कुछ जानते वो नहीं
पहचानते वो नहीं
लातों के जो भूत होते हैं
बातों से तो वो मानते नहीं
आ गयी वो घडी बोल कैसी पड़ी
आ ज़रा मैं तेरी बाहें मरोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
जैसे को तैसा मिला
कैसा मज़ा आया
मारूं कि छोडूं, तेरी टांगें तोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
खाना है पीना है रे
हम सब को जीना है रे
हक छीनता है मगर दूसरों का
तू कितना कमीना है रे
ऐ बांगडू
खाना है पीना है रे
हम सब को जीना है रे
हक छीनता है मगर दूसरों का
तू कितना कमीना है रे
तेरे जैसे हैं जो यूँ ही मरते हैं वो
चाबुक से मारूं के आँखों को फोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
बोल, जैसे को तैसा मिला
कैसा मज़ा आया
मारूं कि छोडूं, तेरी टांगें तोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
जैसे को तैसा मिला
कैसा मज़ा आया
मारूं कि छोडूं, तेरी टांगें तोडूं
बता तेरी मर्ज़ी है क्या
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