इसे महज़ सन्योग नहीं कह सकते कि विजय आनंद की
फिल्मों का संगीत अतिरिक्त माधुर्य लिए होता है. विजय
आनंद ने अपनी अलग हट के पहचान बनाई एक कला
प्रेमी फिल्म निर्देशक की. यहाँ कला से तात्पर्य संगीत
और नृत्य कला से है. वैसे पटकथा चयन के मामले में
भी वे अपने समकालीनों से बीस साबित हुए हैं अधिकतर.
इस फिल्म की कहानी और पटकथा उन्हीं की देन है.
पसंद अपनी अपनी ख्याल अपना अपना. बहुत कम लोगों
को ये बात मालूम होगी कि निर्मताका दखल भी होता था
कई चीज़ों में. निर्माता विनोद दोषी की पिछली फिल्म
सच्चा झूठा में कल्याणजी आनंदजी का संगीत था और वो
फिल्म का संगीत बहुत कामयाब हुआ. उन्होंने शायद बिना
हिचक इस फिल्म के लिए भी कल्याणजी-आनंदजी को चुना.
ये ज़रूर है विजय आनंद ने संगीतकार से वो सारे पापड
बिलवा लियेजिसके लिए वो जाने जाते हैं. परिणाम आपके
सामने है-इस फिल्म के सारे गाने सुने गए और तबियत से
सुने गए.
प्रस्तुत गीत बेहद कर्णप्रिय और करुण गीत है. नायक द्वारा
संदेह की दृष्टि से देखे जाने फलस्वरूप आहात नायिका अपने
आप को इस गीत के ज़रिये व्यक्त कर रही है. गीत की खूबी
है कि इसमें नायक के मुखमंडल पर भी कातरता और ग्लानि
के भाव दर्शाये गए हैं. आपको पहले इस फिल्म के जो तीन
गीत के बोल:
हो ओ ओ ओ ओ नैना मेरे रंग भरे सपने तो सजाने लगे
क्या पता प्यार की शम्मा जले न जले
हो ओ ओ ओ ओ नैना मेरे रंग भरे सपने तो सजाने लगे
आयेंगे वो आयेंगे मैं सोच सोच शरमाऊँ
क्या होगा क्या न होगा मैं मन ही मन घबराऊँ
आज मिलन हो जाए तो समझूं दिन बदले मेरे,
हो ओ ओ ओ नैना मेरे रंग भरे सपने तो सजाने लगे
क्या पता प्यार की शम्मा जले न जले
जानू न मैं तो जानू न रूठे रूठे पिया को मनाना
बिंदिया ओ मेरी बिंदिया मुझे प्रीत की रीत सिखाना
मैं तो सजन की हो ही चुकी वो क्यूँ न हुए मेरे
हो ओ ओ ओ ओ नैना मेरे रंग भरे सपने तो सजाने लगे
क्या पता प्यार की शम्मा.....
कजरा मेरा कजरा मेरी अंखियों का बन गया पानी
टूटा दिल टूटा मेरी तड़प किसी ने न जानी
प्यार में राही एक परछाई हाथ लगे न मेरे ,
हो ओ ओ ओ ओ
.......................................................
naina mere rang bhare-Blackmail 1973
0 comments:
Post a Comment