गज़ब का ये दिन-क़यामत से क़यामत तक १९८८
कलाकार बनने वाले हैं. आइये चलें सन १९८८ में
जब फिल्म क़यामत से क़यामत तक आई थी.
८० के दशक ने कई सितारा पुत्र पुत्रियां देखे जिनमे
से बहुत कम सफलता की सीढियां चढ पाए. इस
दशक की शुरुआत में हमने राजेंद्र कुमार पुत्र का
पदार्पण देखा फिल्म लव स्टोरी में, उसी के आस-पास
सुनील दत्त पुत्र संजय भी रुपहले परदे पर आये. दोनों
की लॉन्च फ़िल्में उनके पिताओं ने बनाईं. फिर आये
सनी देवल जिन्हें धर्मेन्द्र ने लॉन्च किया राहुल रवैल के
निर्देशन में फिल्म बेताब(१९८३) में. उसके बाद दिखे
शशि कपूर पुत्र करन, फिल्म सल्तनत(१९८६) में जो
फिल्मों के बजाये अपने बॉम्बे डाईंग के विज्ञापन के लिए
ज्यादा जाने गए.
फिल्म क़यामत से क़यामत तक के लिए गीतकार मजरूह
के लिखे गीत बेहद पसंद किये गए. लोगों को इनके बोल
याद हो गए अच्छे से, विशेषकर युवा पीढ़ी को. संगीतकार
जोड़ी आनंद मिलिंद की ये पहली फिल्म है. फिल्म से कई
लोगों को ब्रेक मिला. कईयों को सस्पेंशन मिले, कईयों के
कैरियर को एक्स्सेलरेटर मिले तो कईयों की गाडी आगे के
गियर में पहुँच गयी. कुल मिला के इस फिल्म ने कईयों
का कैरियर संवारने में अहम योगदान दिया.
ताहिर हुसैन के पुत्र आमिर को ब्रेक उनके ताऊ ने दिया
इस फिल्म से में, जो नासिर हुसैन के पुत्र मंसूर की बतौर
निर्देशक पहली फिल्म है. फिल्म पर आगे और चर्चा करेंगे.
गीत के बोल:
ग़ज़ब का है दिन, सोचो ज़रा
ये दीवानापन, देखो ज़रा
तुम हो अकेले, हम भी अकेले
मज़ा आ रहा है, क़सम से
ग़ज़ब का है दिन
देख लो हमको करीब से
आज हम मिले हैं नसीब से
ये पल फिर कहाँ
और ये मंज़िल फिर कहाँ
ग़ज़ब का है दिन
क्या कहूँ, मेरा जो हाल है
रात दिन, तुम्हारा खयाल है
फिर भी, जान-ए-जां
मैं कहाँ और तुम कहाँ
ग़ज़ब का है दिन, सोचो ज़रा
ये दीवानापन, देखो ज़रा
तुम हो अकेले, हम भी अकेले
मज़ा आ रहा है, क़सम से
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Gazab ka ye din-QSQT
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