कहाँ तक ये मन को-बातों बातों में १९७९
के लिए. ज्यादा मात्रा में उन्हें अवसर नहीं मिले लेकिन जितना
भी काम है उनका सराहनीय है. सलिल चौधरी ने शायद सबसे
ज्यादा उनकी सेवाएं ली हैं. उसके अलावा राहुल देव बर्मन और
राजेश रोशन ने उन्हें याद किया गीतों के लिए. राजेश रोशन
ने अमित खन्ना के साथ भी काफी काम किया और इस फिल्म
के लिए योगेश का गीतकार के रूप में चयन होना निर्देशक या
निर्माता की वजह से हो सकता है.
‘बातों बातों में’ सन ७९ की एक चर्चित फिल्म है और इसके गीत
बहुत बजे हुए हैं. किशोर कुमार के संजीदा गीतों में इसे शुमार
किया जाता है. आज आप भी आनंद उठायें इसका.
गीत के बोल:
कहाँ तक ये मन को अँधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे
कभी सुख, कभी दुःख, यही ज़िन्दगी है
ये पतझड़ का मौसम, घड़ी दो घड़ी है
नए फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे
भले तेज़ कितना हवा का हो झोंका
मगर अपने मन में तू रख ये भरोसा
जो बिछड़े सफ़र में तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे
कहे कोई कुछ भी, मगर सच यही है
लहर प्यार की जो, कहीं उठ रही है
उसे एक दिन तो, किनारे मिलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे
कहाँ तक ये मन को अँधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे
……………………………………………..
Kahan tak ye man ko-Baaton baaton mein 1979
0 comments:
Post a Comment