Aug 12, 2015

कभी आर कभी पार लागा-आर पार १९५४

संगीतकारओ पी नैय्यर ने जितना भी संगीत दिया वो कर्णप्रिय की श्रेणी
में आता है. उनका नाम आते ही एक शब्द दिमाग में आता है-melody.
इस शब्द का इस्तेमाल लगभग सभी सयाने समीक्षकों ने उनके संगीत पर
बात करते समय इस्तेमाल किया है. मेलोडी का हिंदी अर्थ है-स्वरमाधुर्य.
क्या कर्णप्रियता और स्वर्माधुर्य अलग अलग पैरामीटर हैं? थोडा सा फर्क
है. कर्णप्रिय कोई भी चीज़ हो सकती है किसी व्यक्ति विशेष के लिए, हर
व्यक्ति का कर्णप्रियता का एक पैमाना होता है.

प्रस्तुत गीत फिल्म आर पार से है और फिल्म का शीर्षक गीत है. फिल्म
में गुरु दत्त, श्यामा, शकीला और जॉनी वॉकर प्रमुख कलाकार हैं. यह एक
हलकी फुलकी हास्य फिल्म है ये. इसके गीत अपने समय में लोगों की
जुबान पर चढ के बोले थे. फिल्म का निर्माण और निर्देशन गुरु दत्त ने ही
किया था. प्रसिद्ध कैमरामेन वी के मूर्ती फिल्म के छायाकार हैं.

मजरूह सुल्तानपुरी फिल्म के गीतकार हैं और मजरूह ने नैय्यर के साथ
शुरू के दौर की फिल्मों में काफी गीत लिखे. यह जोड़ी सुपरहिट थी उस
समय. बाद में नैय्यर को एश एच बिहारी की सेवाएं भी मिलनी शुरू हो
गयीं और मजरूह का ज्यादा समय दोनों बर्मन और लक्ष्मी प्यारे के लिए
गीत लिखने में व्यतीत हुआ. वे वो दौर था फिल्म संगीत का जब गाने के
बोल गुणवत्ता के मामले में सर्वश्रेष्ठ हुआ करते थे और एक गीत बनाने में
घंटों, कभी कभी कई दिनों की मेहनत होती थी. गायक से भी काफी पापड
बिलवा लिए जाते थे गायन में.

प्रस्तुत गीत शमशाद बेगम द्वारा गाया गया फिल्म का एकमात्र गीत है मगर
इसने प्रसिद्धि में अपना स्थान आसानी से बना लिया, यही है शमशाद बेगम
की आवाज़ का दम. आवाज़ की स्पष्टता और सधी हुई गायकी की बात होगी
तब तब हम शमशाद बेगम को याद करेंगे. उनकी आवाज़ में एक अलग किस्म
का आकर्षण था.




गीत के बोल:

कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
सैंया घायल किया रे तूने मोरा जिगर
कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
सैंया घायल किया रे तूने मोरा जिगर

कितना संभाला बैरी, दो नैनों में खो गया
देखती रह गयी मैं तो, जिया तेरा हो गया
दर्द मिला ये जीवन भर का
मारा ऐसा तीर नज़र का
लूटा चैन क़रार

कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
सैंया घायल किया रे तूने मोरा जिगर

पहले मिलन में ये तो दुनियाँ की रीत है
बात में गुस्सा लेकिन दिल ही दिल में प्रीत है
मन ही मन में लड्डू फूटे
नैनों से फुलझड़ियाँ छूटे
होंठों पर तक़रार

कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
सैंया घायल किया रे तूने मोरा जिगर
………………………………………………………………….
Kabhi aar kabhi paar-Aar paar 1954

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