आ री आ जा निंदिया-कुंवारा बाप १९७४
लोग उसे देख सिनेमा हॉल में आंसू टपकते हैं. स्क्रीन पर
गुब्बारे के आकार के आंसू देख के जनता के भी ५०-१००
ग्राम आंसू निकल ही आते हैं.
प्रस्तुत गीत ऐसा ही एक गीत है जिसमें रिलीज़ के वक्त
मैंने कईयों को हॉल में आंसू बहते देखा था. आज भी टी
वी स्क्रीन प् ही सही जब भी ये गीत बजता है कईयों के
मन को दुखी अवश्य करता है. कहने को ये लोरी जैसा
गीत है मगर इसकी धुन दर्दीली है. मजरूह के गीत की
धुन बनायीं है राजेश रोशन ने.
गीत के बोल:
आ री आ जा
निंदिया तू ले चल कहीं
उड़नखटोले में
दूर दूर दूर यहाँ से दूर
मेरा तो ये जीवन तमाम
मेरे यार भरा दुःख से
पर मुझको जहां में मिला
सुख कौन बड़ा तुझसे
तेरे लिए मेरी जान
ज़हर हज़ार मैं पी लूँगा
तज दूंगा दुनिया
एक तेरे संग जी लूँगा
ओ नज़र के नूर
आ री आ जा
निंदिया तू ले चल कहीं
उड़नखटोले में
दूर दूर दूर यहाँ से दूर
ये सच है कि मैं अगर
सुख चैन तेरा चाहूँ
तेरी दुनिया से मैं फिर कहीं
अब दूर चला जाऊं
नहीं मेरे डैडी
ऐसी बात फिर से न कहना
रहेगा न जब तू
फिर मुझको भी नहीं रहना
न जा तू हमसे दूर
आ री आ जा
निंदिया तू ले चल कहीं
उड़नखटोले में
दूर दूर दूर यहाँ से दूर
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Aa ri aa ja nindiya-Kunwara Baap 1974
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