हम तो हैं राही दिल के–कारवाँ १९७१
कोई लेना देना नहीं होता. आज एक टी वी चैनल पर
लगभग गुत्थम गुत्था से दिखाई दे रहे ६ वक्ताओं के
प्रलाप सुन के मुझे ये गीत याद आ गया जो सर्वधर्म
सद्भाव का सन्देश भी देता है.
सन १९७१ की फिल्म कारवां में ये गीत जीतेंद्र परदे पर
गा रहे हैं. गायक कलाकार हैं किशोर कुमार जिन्होंने इसे
अनूठा बना दिया है. काफी उर्जावान गीत है और इसे सुन
के स्फूर्ति सी आ जाती है.
फिल्म से आपको दो गीत पूर्व में सुनवाए जा चुके हैं. इस
गीत को लिखा है मजरूह सुल्तानपुरी ने और इसका संगीत
तैयार किया है आर डी बर्मन ने.
गीत के बोल:
हम तो हैं राही दिल के पहुंचेंगे रुकते-चलते
मंज़िल है किसको प्यारी हो
अरे हम तो हैं मन के राजा राजा की चली सवारी
अरे हो सुनो ज़रा
हम तो हैं राही दिल के
हम वो अलबेले हैं सारी दुनिया झेले हैं
अपने तो सब लाखों बस कहने को अकेले हैं
अरे सबका बोझा लई के चलती है अपनी लारी
अरे हो सुनो ज़रा
हम तो हैं राही दिल के
जब तक चलते जाएँ सबका ही दिल अपनाएँ
जब रोए कोई दूजा नैना अपने छलक आएँ
प्यारे काम आएगी सुनता जा बात हमारी
अरे हो सुनो ज़रा
हम तो हैं राही दिल के
हरे हरे शंकर जय शिव शंकर भूषण वल्लभ जय महेश्वर
अल्लाह हु अकबर, अल्लाह हु अकबर.....................
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पंडित मुल्ला डाँटें पर हम सबका दुख बाँटें
सारे हैं अपने प्यारे बोलो किसका गला काटें
रामू या रमजानी अपनी तो सबसे यारी
अरे ओ सुनो ज़रा
हम तो हैं राही दिल के पहुंचेंगे रुकते-चलते
मंज़िल है किसको प्यारी हो
अरे हम तो हैं मन के राजा राजा की चली सवारी
अरे हो सुनो ज़रा
हम तो हैं राही दिल के पहुंचेंगे रुकते-चलते
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Ham to hain rahi dil ke-Caravan 1971
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