रूत है मिलन की-मेला १९७२
सकता है. धुन, बोल, दृश्यावली सब कुछ वैसा ही लगने लगता
है ऐसे गीतों का. एक तबियत से बनाया गया युगल गीत जिसे
गुनगुनाने में खासी कसरत हो जाती है. ये है फिल्म मेला से
रफ़ी और लता का गया हुआ गीत.
श्रेणी प्रेमियों के लिए सूचना–ये पर्यावरण प्रेमी गीत है. इसमें बाग,
खेत वगैरह बहुत सी चीज़ों का जिक्र है. श्रेणी बनाने वाले तो एक
शब्द पर भी श्रेणी बनाया करते हैं-जैसे “रुत-सोंग”, ‘मिलन-सोंग”,
“साथी सोंग’ इत्यादि. ये कसरत कुछ संगीत फोरम, ग्रुप में नियमित
रूप से होती मिलेगी आपको. एक फायदा इसका ये होता है कि
गाना याद रखें के लिए आपके पास नया बहाना हो जाता है. कुछ
गीत केवल श्रेणी बनाते वक्त ही याद किये जाते हैं इन्हें सुनने का
उपक्रम अधिक नहीं होता.
गीत मजरूह ने लिखा और इसकी धुन बनाई आर डी बर्मन ने जिसे
संजय खान और मुमताज़ पर फिल्माया गया है.
गीत के बोल:
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाहों के सहारे
बागों में, खेतों में, नदिया किनारे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
हो कोई सजनवा आ जा
तेरे बिना ठंडी हवा सही न जाए
आ जा ओ आ जा
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाहों के सहारे
हाँ, बागों में, खेतों में, नदिया किनारे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
हो, जैसे रुत पे छाई हरियाली
गहरी होई मुख पे रंगत नेहा की
खेतों के संग झूमे पवन में
फुलवा सपनों के, डाली अरमां की
तेरे सिवा कछु सूझे नाहीं, अब तो सांवरे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाहों के सहारे
बागों में, खेतों में, नदिया किनारे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
ओ ओए सजनिया जान ले ले कोई मोसे
अब तो लागे नैना तोसे
आ जा ओ आ जा
ओ, मन कहता है दुनिया तज के
जानी बस जाऊं तेरी आँखों में
और मैं गोरी, महकी महकी
घुल के रह जाऊं, तेरी साँसों में
हो, इक दूजे में यूँ खो जाएँ, जग देखा करे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाहों के सहारे
बागों में, खेतों में, नदिया किनारे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
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Rut hai Milan ki-Mela 1972
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