न हँसो हमपे ज़माने के हैं-गेटवे ऑफ इण्डिया १९५७
ना आये ये संभव नहीं है.
सुनते हैं फिल्म गेटवे ऑफ इण्डिया से एक मधुर गीत जिसमें
दर्द का पुट है. राजेंद्र कृष्ण के बोल हैं. एक कहानी की मानिंद
गीत जीवन के उतार चढ़ाव को बयां करता चलता है और एक
उम्मीद के साथ पूर्ण होता है. यही इसकी खूबसूरती है. उसके
अलावा जिस नायिका पर इसे फिल्माया गया है वो भी बेहद
खूबसूरत है.
एक्टिंग में दो चीज़ें होती हैं-ओवरएक्टिंग और अंडरप्ले. दोनों एक
दूसरे की विपरीत चीज़ें हैं. अंडरप्ले केवल मंजे हुए कलाकार के
बस में होता है. वैसे तो कभी कभी मंजे हुए कलाकार भी जबरिया
एक्टिंग करते नज़र आते हैं.
फ़िल्मी नायिकाओं में वहीदा रहमान और मधुबाला का कोई सानी
नहीं हैं अंडरप्ले के मामले में. गीत के आखरी अंतरे में जो भाव
हैं नायिका के चेहरे पर उससे आपको समझ आ जायेगा मैं क्या
कहना छह रहा हूँ.
गीत के बोल:
न हँसो हमपे ज़माने के हैं ठुकराए हुए
दर-ब-दर फिरते हैं तक़दीर के बहकाए हुए
न हँसो हमपे ज़माने के हैं ठुकराए हुए
क्या बताएँ तुम्हें कल हम भी चमन वाले थे
क्या बताएँ तुम्हें कल हम भी चमन वाले थे
ये न पूछो कि हैं वीराने में क्यों आए हुए
न हँसो हमपे ज़माने के हैं ठुकराए हुए
बात कल की है के फूलों को मसल देते थे
बात कल की है के फूलों को मसल देते थे
आज काँटों को भी सीने से हैं लिपटाए हुए
न हँसो हमपे ज़माने के हैं ठुकराए हुए
ऐसी गर्दिश में न डाले कभी क़िस्मत तुमको
ऐसी गर्दिश में न डाले कभी क़िस्मत तुमको
आपके सामने जिस हाल में हैं आए हुए
न हँसो हमपे ज़माने के हैं ठुकराए हुए
एक दिन फिर वही पहली सी बहारें होंगी
एक दिन फिर वही पहली सी बहारें होंगी
इस उम्मीद पे हम दिल को हैं बहलाए हुए
न हँसो हमपे ज़माने के हैं ठुकराए हुए
दर-ब-दर फिरते हैं तक़दीर के बहकाए हुए
.................................................................................
Na hanso hampe-Gateway of India 1957
Artists: Madhubala
0 comments:
Post a Comment