पल्लो लटके- नौकर १९७८
में. राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोक गीत है जिसके कई तर्जुमे
मैंने अभी तक सुने.. सबसे पहला संस्करण मैंने सुना था एक
रेलगाड़ी में गाती हुई बंजारन का. इसके बाद किसी के घर पर
पृथ्वीराज और रेहाना का गाया हुआ वर्ज़न जो एच एम वी द्वारा
रिलीज़ एक ई पी पर था. इसके बाद सुनने को मिला वो था
चंपा-मेथी वर्ज़न जो शायद सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ ८०
के दशक में.
आज सुनते हैं इसका फ़िल्मी संस्करण फिल्म नौकर से. ये
फिल्म सन १९७९ में पैदा हुई थी. इसमें संजीव कुमार और
जाया भादुड़ी की प्रमुख भूमिकाएं हैं.
गीत के बोल:
हाँ पल्लो लटके रे म्हारो पल्लो लटके
पल्लो लटके रे म्हारो पल्लो लटके
ज़रा सा टेढ़ो हो जा बालमा म्हारो पल्लो लटके
गोरी जियो भटके रे म्हारो जियो भटके
जियो भटके रे म्हारो जियो भटके
ज़रा सा ऊँ ज़रा सा आं
ज़रा सा सीधो हो जा ज़ालिमा म्हारो जियो भटके
पल्लो लटके रे म्हारो पल्लो लटके
इस खातिर से तेरे द्वार लियो मैंने पल्लू डार
इस खातिर से तेरे द्वार लियो मैंने पल्लू डार
पर छाती में ना सीधो लागे म्हारे नैन कटार
ज़रा सा आं ज़रा सा ऊँ
ज़रा सा टेढ़ो हो जा बालमा म्हारो पल्लो लटके
जियो भटके रे म्हारो जियो भटके
पल्लो लटके रे म्हारो पल्लो लटके
मूंगे जैसे लाले होंठ मोती जैसे गोरे गाल
मूंगे जैसे लाले होंठ मोती जैसे गोरे गाल
ज़रा सा घूँघटा ऊपर फेर दिखा दे मोको भी ये माल
ज़रा सा ऊँ ज़रा सा आं
ज़रा सा सीधो हो जा ज़ालिमा म्हारो जियो भटके
पल्लो लटके रे म्हारो पल्लो लटके
जियो भटके रे म्हारो जियो भटके
मैं हूँ जिस बस्ती की हूर नगर गुलाबी है मशहूर
मैं हूँ जिस बस्ती की हूर नगर गुलाबी है मशहूर
गोरी हंस के बैयाँ डाल यहीं से दिखला दूं जयपुर
ज़रा सा ऊँ ज़रा सा आं
ज़रा सा सीधो हो जा ज़ालिमा म्हारो जियो भटके
पल्लो लटके रे म्हारो पल्लो लटके
ज़रा सा टेढ़ो हो जा बालमा म्हारो पल्लो लटके
जियो भटके रे म्हारो जियो भटके
ज़रा सा सीधो हो जा ज़ालिमा म्हारो जियो भटके
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Pallo latke-Naukar 1978
Artists: Sanjeev Kumar, Jaya Bhaduri
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