ऐ वतन के नौजवान–बाज़ १९५३
ये देश के नौजवानों से कुछ कह रहा है. गीत ६५ साल पहले
का है मगर इसके बोल आज भी प्रासंगिक हैं.
आज का नौजवान सोशल मीडिया के भंवरजाल और इलेक्ट्रोनिक
मीडिया के फीलगुड मायाजाल में उलझता जा रहा है और समाज
और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी भूलता जा रहा है उसे इस गीत
को सुन कर मनन अवश्य करना चाहिए.
बोल मजरूह सुल्तानपुरी के हैं और संगीत ओ पी नैयर का. इसे
गीता दत्त ने गाया है.
गीत के बोल:
ओ आ आ आ आ आ
आ आ आ आ आ
हर ज़बां रुकी रुकी हर नज़र झुकी झुकी
क्या यही है ज़िंदगी क्या यही है ज़िंदगी
ऐ वतन के नौजवान जाग और जगा के चल
ऐ वतन के नौजवान जाग और जगा के चल
जाग और जगा के चल
ज़ुल्म जिस कदर बढ़े और सर उठा के चल
और सर उठा के चल
आ आ आ आ आ
कांपे है तेरी नज़र उनके दिल में चोर है
उन में बल है तेरे भी बाज़ुओं ज़ोर है
कांपे है तेरी नज़र उनके दिल में चोर है
उन में बल है तेरे भी बाज़ुओं ज़ोर है
ज़ालिमों का हर गुरूर ख़ाक में मिला के चल
ऐ वतन के नौजवान जाग और जगा के चल
जाग और जगा के चल
ज़ुल्म जिस कदर बढ़े और सर उठा के चल
और सर उठा के चल
आ आ आ आ आ
क्या समंदरों का शोर और भँवर की चाल क्या
तेरे आगे सर उठाए मौज की मजाल क्या
क्या समंदरों का शोर और भँवर की चाल क्या
तेरे आगे सर उठाए मौज की मजाल क्या
खोल ज़िंदगी की नाव बादबां उड़ा के चल
ऐ वतन के नौजवान जाग और जगा के चल
जाग और जगा के चल
ज़ुल्म जिस कदर बढ़े और सर उठा के चल
और सर उठा के चल
आ आ आ आ आ
कारवां वतन का आज डाकुओं में घिर गया
ज़ुल्म के अंधेरे में आ रही है इक सदा
कारवां वतन का आज डाकुओं में घिर गया
ज़ुल्म के अंधेरे में आ रही है इक सदा
इंतक़ाम की मशाल हाथ में जला के चल
इंतक़ाम आ आ आ आ आ आ
इंतक़ाम आ आ आ आ आ आ
इंतक़ाम आ आ आ आ आ आ
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Ae watan ke naujawanon-Baaz 1953
Artist: Geeta Bali
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