आज सजन मोहे अंग लगा लो-प्यासा १९५७
उल्लेखनीय गीत है-आती क्या खंडाला. आज के दौर में इससे भी आगे
बढे हुए गीत बन चुके हैं.
हम चूंकि घिसे पिटे जून पुराने अंदाज़ वाले हैं इसलिए हमें काले पीले
दौर के गाने ज्यादा सुहाते हैं. एक उत्कृष्ट(इस शब्द का काफी दिन से
प्रयोग नहीं किया है) कोटि का गीत श्रवणते हैं चलचित्र प्यासा से. इस
चलचित्र के प्रमुख पात्रों को आप पहचानते है अतः नाम पुनः छापने में
कोई अर्थ नहीं.
साहित्यिक गीत सामने आते ही हमें वो सब याद आने लगता है-बीती
विभावरी जाग री, चारु चंद्र की चंचल किरणें, वो तोडती पत्थर के
साथ साथ चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदी के चम्मच से वेज
सूप पिलाया.
गीत के बोल:
सखी री बिरहा के दुखड़े सह सह कर
जब राधे बेसुध हो ली
तो इक दिन अपने मनमोहन से जा कर यूँ बोली
आज सजन मोहे अंग लगा लो
जनम सफ़ल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगा लो
जनम सफ़ल हो जाये
हृदय की पीड़ा देह की अग्नि
सब शीतल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगा लो
जनम सफ़ल हो जाये
करूं लाख जतन मोरे मन की तपन
मोरे तन की जलन नहीं जाये
करूं लाख जतन मोरे मन की तपन
मोरे तन की जलन नहीं जाये
कैसी लागी ये लगन कैसी जागी ये अगन
कैसी लागी ये लगन कैसी जागी ये अगन
जिया धीर धरन नहीं पाये
प्रेम सुधा मोरे साँवरिया साँवरिया
प्रेम सुधा इतनी बरसा दो जग जल थल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगा लो
जनम सफ़ल हो जाये
मोहे अपना बना लो मेरी बाँह पकड़
मैं हूँ जनम जनम की दासी
मोहे अपना बना लो मेरी बाँह पकड़
मैं हूँ जनम जनम की दासी
मेरी प्यास बुझा दो मनहर गिरिधर प्यास बुझा दो
मनहर गिरिधर प्यास बुझा दो
मनहर गिरिधर मैं हूँ अन्तर्घट तक प्यासी
प्रेम सुधा मोरे साँवरिया साँवरिया
प्रेम सुधा इतनी बरसा दो जग जल थल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगा लो
जनम सफ़ल हो जाये
कई जुग से हैं जागे मोरे नैन अभागे
कई जुग से हैं जागे मोरे नैन अभागे
कहीं जिया नहीं लागे बिन तोरे
सुख देखे नहीं आगे
सुख देखे नहीं आगे
दुःख पीछे पीछे भागे
जग सूना सूना लागे बिन तोरे
प्रेम सुधा मोरे साँवरिया साँवरिया
प्रेम सुधा इतनी बरसा दो जग जल थल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगा लो
जनम सफ़ल हो जाये
हृदय की पीड़ा देह की अग्नि
सब शीतल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगा लो
जनम सफ़ल हो जाये
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Aaj sajan mohe ang laga lo-Pyasa 1957
Artist: Waheeda Rehman, Guru Dutt
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