पिया संग खेलो होली-फागुन १९७३
कम लोकप्रिय फिल्मन फागुन से.
वहीदा रहमान पर फिल्माए गए इस गीत को सुन कर होली
पर आनंद आ जाता है. देखने को मिल जाए तो सोने पे सुहागा.
मजरूह सुल्तानपुरी के बोल हैं और एस डी बर्मन का संगीत.
इस ब्लॉग के गुप्त पाठकों और कॉपी पेस्टरों को होली की प्रकट
शुभकामनाएं. सुप्त पाठकों को हैप्पी हैप्पी. लुप्त पाठकों से एक
बार कम से कम त्यौहार पर आने का निवेदन.
गीत के बोल:
ओ ओ ओ पिया संग खेलो होली
पिया संग खेलो
पिया संग खेलो होली
हो फागुन आयो रे
चुनरिया भिगो ले गोरी
फागुन आयो रे
हो फागुन आयो रे
देखूं जिस ओर मच रहा शोर
गली में अबीर उड़े हवा में गुलाल
कहीं कोई हाय तन को चुराय
चली जाए देती गारी पोंछे जाये गाल
करे कोई जोरा जोरी
करे कोई जोरा जोरी
फागुन आयो रे
हो फागुन आयो रे
ओ ओ
कोई कहे सजनी सुनाओ पुकार
बरस बाद आये तोहरे द्वार
आज तो मोरी गेंदे की कली
होली के बहाने मिलो एक बार
तन पे है रंग मन पे है रंग
किसी मतवारे ने क्या रंग दियो डार
उई फुलवा पे पार गोरी तोरे गार
नैनों में गुलाबी डोरे मुख पे बहार
भीगी सारी भीगी चोली
फागुन आयो रे
हो फागुन आयो रे
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Piya sang khelo holi-Phagun 1973
Artists: Waheeda Rehman, Dharmendra
1 comments:
LOL. लो जी हो गए हाज़िर
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