आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा-अपना घर १९६०
सम्मान दूसरे भी नहीं करते. कुछ वैसे ही शरीर की
इन्द्रियों का भी उचित सम्मान आवश्यक है. ये तो
व्यक्ति पे स्वयं निर्भर है कि वो इनका उपयोग किस
प्रकार से और कितना करे..
शरीर की प्रमुख इन्द्रियों में आँखों को सबसे उच्च
स्थान दिया गया है. ग्रहण के दिन सूर्य और चन्द्रमा
को सीधे आँखों से ना देखें. धार्मिक दृष्टि से देखें या
वैज्ञानिक दृष्टि से, दोनों ही मामले से ये बात सटीक
है.
सुनते हैं फिल्म अपना घर से अगला गीत जिसे
मोहम्मद रफ़ी और आरती मुखर्जी ने गाया है.
प्रेम धवन की रचना है और रवि शंकर शर्मा उर्फ रवि
का संगीत.
गीत के बोल:
कोई न हो इस जग में दाता
आँखों से मजबूर
दुनिया में रह कर भी हम है
इस दुनिया से दूर
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
जिनसे जग उजियारा
अन्धों पर क्या गुज़रे
ये क्या जाने आँखों वाला
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
बाबा बाबा बाबा
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
औरों की तो रात अँधेरी
अपना दिन भी अँधेरा
औरों की तो रात अँधेरी
अपना दिन भी अँधेरा
हम है जहाँ पर उस दुनिया में
कभी न हुआ सवेरा
सूरज चाँद सितारे सबको
सूरज चाँद सितारे सबको
देखा हमने काला
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
बाबा बाबा बाबा
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
कदम कदम पर ठोकर खाये
राह चली न जाये
कदम कदम पर ठोकर खाये
राह चली न जाये
फिरते है अपने कंधे पर
अपनी लाश उठाये
जीवन भी इक बोझ बना है
जीवन भी इक बोझ बना है
कब तक जाये संभाला
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
बाबा बाबा बाबा
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
कब तक यूँ ही सहते जायें
दुनिया के तानों को
नूर तो छीना दाता बहरा भी कर दे कानों को
देख लिया जी भर के हमने
तेरा खेल निराला तेरा खेल निराला
देख लिया जी भर के हमने
तेरा खेल निराला
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
बाबा बाबा बाबा
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
जिनसे जग उजियारा
अन्धों पर क्या गुज़रे
ये क्या जाने आँखों वाला
आँखे बड़ी हैं नेमत बाबा
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Aankhen badi hain nemat-Apna Ghar 1960
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