Jun 28, 2009

संसार से भागे फिरते हो-चित्रलेखा १९६४

ये भोग भी एक तपस्या है..............इन शब्दों को कितनी
खूबसूरती से परोसा गया है गीत में।

साहिर लुधियानवी ने उर्दू के अलावा हिंदी भाषा में
भी कई उत्तम रचनाएँ दी हैं। १९६४ में एक फिल्म आई थी
'चित्रलेखा' उसमे अशोक कुमार और मीना कुमारी की मुख्य
भूमिकाएं थी। हिंदी सिनेमा और दर्शन का साथ पुराना रहा है।
ये गीत भी एक सन्देश देता प्रतीत होता है। पलायनवादी
विचारधारा के लोगों को ये गीत एक बार अवश्य सुनना
चाहिए । संसार में रह कर भी असांसारिक हुआ जा सकता
है शायद गीत यही सन्देश दे रहा है।

बोल : साहिर लुधियानवी
संगीत: रोशन



गीत के बोल:

संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोक को भी अपना ना सके, उस लोक में भी पछताओगे

ये पाप हैं क्या, ये पुण्य हैं क्या, रीतों पर धर्म की मुहरे हैं
हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे.

संसार से भागे फिरते हो..........

ये भोग भी एक तपस्या हैं, तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचयिता का होगा, रचना को अगर ठुकराओगे

संसार से भागे फिरते हो..........

हम कहते हैं ये जग अपना हैं, तुम कहते हो झूठा सपना हैं
हम जनम बिताकर जाएंगे, तुम जनम गवाकर जाओगे

संसार से भागे फिरते हो..........
...............................................................................
Sansar se bhage phirte ho-Chitralekha 1964

Artists: Ashok Kumar, Meena Kumari

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP