आ हा हा हा जवानी-बड़े सरकार १९५७
ये उन मधुर और कम सुने गए गीतों में से एक है जिसको
मैं अक्सर सुना करता हूँ। इसके बोल साहिर लुधियानवी द्वारा
लिखे गए हैं। साहिर के गीत, लगभग सारे ही, मैंने बहुत ध्यान
से सुने हैं। ये एक सरल गीत है मगर फिल्मी गीतकार और
फिल्मी साहित्यकार के नज़रिए में क्या फर्क है ये जानने के लिए
आइये इस गीत पर गौर किया जाए। सामान्यतः रुत 'बदल जाती' है
इस गीत में 'फ़िर गई' है। इस गीत में चाल लचकती है और मन
ताल देता है। आम तौर पर गीतकार कमर को लचका के , बल
खिला के और चाल को लहरा के या बदल के काम चला लिया
करते हैं। साहिर ने तुकबंदी में ज़रा भी कंजूसी नहीं की है। जहाँ
उर्दू का शब्द फिट हुआ , कर दिया और जहाँ हिन्दी के शब्द की
ज़रूरत पड़ी, लगा दिया। लाज और रिवाज का संगम आपको
साहिर के लेखन में जरूर मिलेगा।
हिरोइन इतनी गदगद है इस गाने में कि सिंचाई वाले पानी के पाईप
को तलवार की भांति घुमाना चालू कर देती है। इन मोहतरमा का
नाम है कामिनी कौशल।
गीत के बोल:
आ हा हा हा
आ हा हा हा जवानी
झूमती है
दुल्हन बन के
जी बन ठन के
न जाने किसके सपनों में
आ हा हा हा जवानी
झूमती है
दुल्हन बन के
जी बन ठन के
न जाने किसके सपनों में
रुत फिरी गुलशन खिले
बन गए नए सिलसिले
रुत फिरी गुलशन खिले
बन गए नए सिलसिले
लचके चाल मन देवे ताल
कहूं क्या मैं हाल क्या है
आ हा हा हा जवानी
झूमती है
दुल्हन बन के
जी बन ठन के
न जाने किसके सपनों में
आ हा हा हा
बज उठीं शहनाइयां
सज गई तनहाइयाँ
बज उठीं शहनाइयां
सज गई तनहाइयाँ
ख़ुद से आज मुझे आए लाज
सखी ये रिवाज़ क्या है
आ हा हा हा जवानी
झूमती है
दुल्हन बन के
जी बन ठन के
न जाने किसके सपनों में
आ हा हा हा
कौन ये मुझे भा गया
किस पे जी मेरा आ गया
कौन ये मुझे भा गया
किस पे जी मेरा आ गया
दिल का साज़ करे जिसपे नाज़
वो अजीब राज़ क्या है
आ हा हा हा जवानी
झूमती है
दुल्हन बन के
जी बन ठन के
न जाने किसके सपनों में
आ हा हा हा
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