बचपन की मोहब्बत को-बैजू बावरा १९५२
ज़ख्म जब हरे होते हैं तो उनमे से टीस उभरती है। अपनी भावनाओं को
कोई कितना भी दबाये वो बाहर आने का ज़रिया ढूंढ निकालती हैं। बात
मुझ पर भी लागू होती है । यादें जब बाहर निकलती हैं तो चायनीज नूडल
की भांति हाथ से फिसलना शुरू कर देती हैं और कुर्सी मेज़ के इर्द गिर्द
जमा हो जाती हैं।
इस गीत के साथ कुछ यादें जुडी हुई हैं। जब जब इसको सुनता हूँ मुझे
अपनी बदकिस्मती पर रंज होने लगता है। मेरी पसंद के गीत मैं इस
ब्लॉग में शामिल करता रहा हूँ उसी कड़ी में ये पेश है बैजू बावरा का गीत।
शकील बदायूनी के अच्छे गीतों में इसको गिना जा सकता है।
गीत के बोल:
हो जी हो, ओ ओ ओ ओ
बचपन की मोहब्बत को, दिल से ना जुदा करना
बचपन की मोहब्बत को, दिल से ना जुदा करना
जब याद मेरी आये, मिलने की दुआ करना
बचपन की मोहब्बत को, दिल से ना जुदा करना
जब याद मेरी आये, मिलने की दुआ करना
घर मेरी उम्मीदों का, सूना किये जाते हो
हो जी हो, ओ ओ ओ ओ
दुनिया ही मुहब्बत की, लूटे लिए जाते हो
जो ग़म दिए जाते हो, उस ग़म की दवा करना
बचपन की मोहब्बत को, दिल से ना जुदा करना
जब याद मेरी आये, मिलने की दुआ करना
सावन में पपीहे का, संगीत चुराऊँगी
हो जी हो, ओ ओ ओ ओ
फ़रियाद तुम्हें अपनी, गा गा के सुनाउंगी
आवाज़ मेरी सुन के, दिल थाम लिया करना
बचपन की मोहब्बत को, दिल से ना जुदा करना
जब याद मेरी आये, मिलने की दुआ करना
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