रात को आईयेगा-साहेब बहादुर १९७७
फिल्म साहेब बहादुर के बारे में एक अच्छी बात ये है की ये फिल्म
निकोलोई गोगोल के एक नाटक पर आधारित है। दूसरी बात इसको हम
सन १९५० की फिल्म अफसर का रिमेक कह सकते हैं । अफसर का
नाम दर्शकों ने ज़रूर सुना होगा। फिल्म 'साहेब बहादुर' का नाम दर्शकों
को दूरदर्शन के सौजन्य से मालूम हुआ। दूरदर्शन इस फिल्म को ३ बार
दिखला चुका है । क्लासिक की परिभाषा शायद समय समय पर बदलती रहती
है। अधिकतर वे फ़िल्में जिनको दर्शक खुद देखने नहीं जाते , चैनल वालों
द्वारा जबरदस्ती दिखलाई जाती हैं वो भी क्लासिक कहलाती हैं। इस फिल्म में
क्लासिक जैसा कुछ नहीं है सिवा लक्ष्मी शंकर के ट्रुप का नृत्य और २-३
गीतों के। फिल्म सिनेमा हाल में कब लगी, लगी भी या नहीं कोई जानकारी
नहीं है मुझे।
गीत सुनिए और बाकी का विवरण खुद समझने का प्रयत्न करिए।
गीत के बोल:
रात को आईयेगा दिल बहलाईएगा
जो कुछ भी पेश करें शौक फरमाइयेगा
रात को आईयेगा दिल बहलाईएगा
जो कुछ भी पेश करें शौक फरमाइयेगा
हे रात को आयिगा दिल बहलाईएगा
जो कुछ भी पेश करें शौक फरमाइयेगा
रात को आईयेगा
लेके बहार आये हैं प्यार ही प्यार लाये हैं
आपकी दुनिया में यारों दिल का करार लायें हैं
समझो ना बेगाना अपना समझ के आना
आँखों ही आँखों में कर लेंगें याराना
हम भी हैं मतवाले तुम भी हो दिलवाले
करते हैं वादा के खुश होके जाईयेगा
रात को आयिगा दिल बहलाईएगा
जो कुछ भी पेश करें शौक फरमाइयेगा
रात को आईयेगा
एक हलचल मचा देंगे सूनी महफ़िल सजा देंगे
ऐसा तूफ़ान उठा देंगे सोये दिलों को जगा देंगे
रात की रात ऐसी रौनक लगेगी नाचेगा घुँघरू
नाचेगा घुँघरू तो पायल बजेगी
होश में आईयेगा तो मदहोश जियेगा, हाँ
रात को आईयेगा दिल बहलाईएगा
जो कुछ भी पेश करें शौक फरमाइयेगा
रात को आईयेगा
दो दिन के मेहमान हैं जब चले जायेंगे
जितना भी भूलना चाहोगे राह राह के याद आयेंगे
चाहे तो रख लेना अपना बनाके
आँखों में पलकों में दिल में छुपा के
आ जाना शाम ढले मस्ती का दौर चले
सुन के अपनी कुछ अपनी सुनियेगा हाँ
रात को आईयेगा दिल बहलाईएगा
जो कुछ भी पेश करें शौक फरमाइयेगा
रात को आईयेगा दिल बह्लायिगा
जो कुछ भी पेश करें शौक फरमाइयेगा
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