न जाने दिन कैसे-चला मुरारी हीरो बनने १९७७
है जिससे यहाँ के बाशिंदे भली भाँति वाकिफ हैं. ये कभी क्रूर नज़र
आता है तो कभी भाईचारे की एक अच्छी मिसाल. उतार चढ़ाव के
ऊसल-मिसल से भरपूर है यहाँ का जीवन. हिंदी सिनेमा के कलाकार
असरानी को ४८ साल हो गए हैं इस बॉलीवुड की फिल्मों में काम
करते हुए. काफी लंबा अंतराल है. इस दौरान उन्होंने अपने जीवन
के सभी रंग अवश्य देख लिए होंगे. बतौर हास्य कलाकार तो जनता
ने उन्हें बहुत चाहा. दरअसल एक छबि जो दर्शक के मन में बन
जाती है किसी कलाकार की, वो उसे तोडना नहीं चाहता. यह ट्रेंड
अभी भी जिंदा है, कुछ बदलाव अवश्य आये हैं जैसे हमने उदाहरण
दिया था फिल्म बाजीगर और उसके नायक का. सन १९६७ की एक
फिल्म ‘हरे कांच की चूडियाँ’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने
वाले असरानी लगभग पौने ४०० फिल्मों में काम कर चुके हैं.
असरानी ने एक संजीदा फिल्म बनाई और कोशिश की एक संजीदा
रोल करने की, मगर उस प्रयास में वे बॉक्स ऑफिस पर असफल
रहे. हम फिल्म ‘चला मुरारी हीरो बनने’ की बात कर रहे हैं आपसे.
फिल्म की कहानी औसत है मगर इसमें अच्छे गीत हैं और इसमें
हेमा मालिनी की उपस्थिति के बावजूद फिल्म कोई कमाल दिखलाने
में असफल रही. कथानक चयन में शायद कमी रही और संपादन
भी फिल्म का सामान्य है. या तो उनको उस समय इन विधाओं के
पारंगतों की सेवाएं नहीं मिल पाईं या उनके चयन में कोई कमी रही.
फिल्म के गीत आपको राहुल देव बर्मन के भक्तों के संग्रह में अवश्य
मिल जायेंगे.
आज आपको फिल्म से किशोर कुमार का गाया एक गीत सुनवा रहे
हैं जिसे असरानी पर फिल्माया गया है. असरानी का पूरा नाम है
गोवर्धन असरानी. वे अपने सरनेम या उपनाम से ही जाने जाते हैं.
असरानी ने एक और फिल्म बनाई -हम नहीं सुधरेंगे जो सन १९८०
में रिलीज़ हुई थी. उसके अलावा उन्होंने कुछ हिंदी गुराती फिल्मों का
निर्देशन भी किया है.
गीत के बोल:
ना जाने दिन कैसे जीवन में आये हैं
ना जाने दिन कैसे जीवन में आये हैं
के मुझसे बिछड़े खुद मेरे साये हैं
ना जाने दिन कैसे जीवन में आये हैं
क्या क्या सोचा था क्या थीं उम्मीदें
जिसके लिए भी मैंने खो दीं आँखों की ये नींदें
उसी से दुःख का तोहफे ये पाए हैं
ना जाने दिन कैसे जीवन में आये हैं
समझा सुख जिसको छाया थी गम की
जैसे कहीं रेत पे चमके कुछ शबनम सी
ये धोखे नज़र के हमने भी खाए हैं
ना जाने दिन कैसे जीवन में आये हैं
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Na jaane din kaise-Chala murari hero banne 1977
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