बादल पे चल के आ-विजय १९८८
सब बातें इस गीत के आने के पहले थोड़ी ज्यादा सुहानी
लगा करती थीं. फिल्म विजय के गीत ने हमारे लिए बादल
पे चल के आने का रास्ता भी खोल दिया. हम कल्पना
में ही सही किस किस प्रकार के वाहन और कैसी कैसी
दुनिया में घूम आते हैं.
निदा फाजली के लिखे इस गीत की तर्ज़ बनाई है शिव हरी
की जोड़ी ने. इसे गाया है लता संग सुरेश वाडकर ने. जो
कलाकार परदे पर इस गीत को गा रहे हैं वो हैं-ऋषि कपूर
और सोनम. इसके अलावा इसमें एक और पेयर आपको
मिलेगा-अनिल कपूर संग मीनाक्षी शेषाद्री. इसको कहते हैं
इकोनोमी गीत. चार सितारों पर एक ही गीत फिल्माया लिया
गया है. उसके अलावा पर्यावरण प्रेमी गीत है. लगभग हर
मौसम के अलावा हरियाली जितने भी प्रकार की हो सकती है
इस गीत में आप देख सकते हैं. गीत में प्रयुक्त साइकिलों ने
भी कमाल का रोमांटिसिज्म दिखलाया है.
गीत के बोल:
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
साँसों से मेरी निकल के आ
बाहों में मेरी मचल के आ
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
साँसों से मेरी निकल के आ
बाहों में मेरी मचल के आ
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
साँसों से मेरी निकल के आ
बाहों से मेरी मचल के आ
शाम होते लहराए मौसम हरे हरे
चांदी सा बरसाए बदल भरे भरे
शाखों पे लहराए मौसम हरे हरे
चांदी सा बरसाए बदल भरे भरे
भीगी हुई इन फिजाओं में
आँखों से संभल के
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
मैं हूँ तेरी ज़मीन तू मेरा आसमान
तू मेरी आरजू मैं तेरी जाने-जान
टूटती है खनक बन के अंगडाईयाँ
आ जा बाहों में भर ले तन्हाइयां
मैं हूँ तेरी ज़मीन तू मेरा आसमान
तू मेरी आरजू मैं तेरी जाने-जान
अंचल की चंचल हवाओं में
होंठों पे गीतों सा ढल के आ
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
शीशे सी बाहों पे बूँदें रुकी रुकी
पलकों पे शर्माए रातें झुकी झुकी
शीशे सी बाहों पे बूँदें रुकी रुकी
पलकों पे शर्माए रातें झुकी झुकी
जुल्फों की काली घटाओं से मुझ में
नशे सा पिघल के आ
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
साँसों से मेरी निकल के आ
बाहों से मेरी मचल के आ
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
बादल पे चल के आ
सावन में ढल के आ
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Badal pe chalk ke aa-Vijay 1988
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