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Apr 23, 2017

दुल्हन चली हाँ पहन चली-पूरब और पश्चिम १९७०

एक देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत गीत सुनते हैं
जिसे महेंद्र कपूर ने गाया है.

फिल्म: पूरब और पश्चिम
वर्ष: १९७०
गीतकार: इन्दीवर
गायक: महेंद्र कपूर
संगीत: कल्याणजी आनंदजी



गीत के बोल:

पूरब में सूरज ने छेड़ी  जब किरणों की शहनाई
चमक उठा सिन्दूर गगन पे  पच्छिम तक लाली छाई

दुल्हन चली  हाँ पहन चली
हो रे दुल्हन चली  हो पहन चली
तीन रंग की चोली
बाहों में लहराये गंगा जमुना
देख के दुनिया डोली
दुल्हन चली  हो पहन चली
तीन रंग की चोली

ताजमहल जैसी ताजा है सूरत
चलती फिरती अजंता की मूरत
मेल मिलाप की मेहंदी रचाए
बलिदानों की रंगोली
दुल्हन चली  हो पहन चली
तीन रंग की चोली

मुख चमके ज्यूँ हिमालय की चोटी
हो ना पड़ोसी की नीयत खोटी
ओ घर वालों ज़रा इसको संभालो
ये तो है बड़ी भोली
दुल्हन चली  हो पहन चली
तीन रंग की चोली

और सजेगी अभी और संवरेगी
चढ़ती उमरिया है और निखरेगी
अपनी आजादी की दुल्हनिया
दीप के ऊपर होली
दुल्हन चली  हो पहन चली
तीन रंग की चोली

देश प्रेम ही आजादी की दुल्हनिया का वर है
इस अलबेली दुल्हन का सिंदूर सुहाग अमर है
माता है कस्तूरबा जैसी  बाबुल गाँधी जैसे
बाबुल गाँधी जैसे
चाचा इसके नेहरु  शास्त्री  डरे ना दुश्मन कैसे
डरे ना दुश्मन कैसे
वीर शिवाजी जैसे वीरे  लक्ष्मी बाई बहना
लक्ष्मण जिसके बोध  भगत सिंह  उसका फिर क्या कहना
उसका फिर क्या कहना
जिसके लिए जवान बहा सकते हैं खून की गंगा
जिसके लिए जवान बहा सकते हैं खून की गंगा
आगे पीछे तीनो सेना ले के चले तिरंगा
सेना चलती है ले के तिरंगा
सेना चलती है ले के तिरंगा
हो कोई हम प्रान्त के वासी हो कोई भी भाषा भाषी
सबसे पहले हैं भारतवासी
सबसे पहले हैं भारतवासी
सबसे पहले हैं भारतवासी
सबसे पहले हैं भारतवासी
……………………………………………………
Dulhan chali haan pahan chali-Purab aur pashchim 1970

Artists: Manoj Kumar, Bharti, Various

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Aug 15, 2015

है प्रीत जहाँ की रीत सदा-पूरब और पश्चिम १९७०

आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको एक देशभक्तिपूर्ण गीत सुनवाते
हैं जो फिल्म पूरब और पश्चिम से है. इसे महेंद्र कपूर ने गाया है. गीत शुरू
होता है हमारे देश की उपलब्धियों के गुणगान से. समूचे विश्व को हमारे देश
और उसकी समृद्ध विरासत से बहुत कुछ मिला है. ये हम नहीं भूल सकते
और हमें उन उपलब्धियों और योगदान पर गर्व होना चाहिए.

गीत हमारे देश की संस्कृति की विशेषताएं भी बतलाता है जिसमें सभी धर्मों
और वर्गों के लिए स्थान है. विश्व का यही एकमात्र ऐसा देश है जो विभिन्न
संस्कृतियों और समाजों को साथ लेकर चल रहा है सदियों से और आगे
चलता रहेगा. हमारी आस्था और निष्ठां को मजबूत बनाते हैं इस गीत के
बोल.

इन्दीवर के लिखे गीत की धुन बनाई है कल्याणजी आनंदजी ने और यह
फिल्म सन १९७० में रिलीज़ हुई थी. गीत काफी लोकप्रिय गीत है और इसे
आप राष्ट्रीय पर्वों पर ज़रूर सुन लेते हैं एक न एक एक बार.





गीत के बोल:

जब जेरो दिया मेरे भारत ने
भारत ने मेरे भारत ने
दुनिया को तब गिनती आई
तारों की भाषा भारत ने
दुनिया को पहले सिखलाई

देता न दशमलव भारत तो
यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था
धरती और चाँद की दूरी का
अंदाज़ लगाना मुश्किल था

सभ्यता जहाँ पहले आई
पहले जन्मी है जहाँ पे कला
अपना भारत जो भारत है
जिसके पीछे संसार चला
संसार चला और आगे बढ़ा
ज्यूँ आगे बढ़ा बढ़ता ही गया
भगवान करे ये और बढे
बढ़ता ही रहे और फूले फले

रुक क्यूँ गए, और गाओ

है प्रीत जहाँ की रीत सदा मैं गीत वाहन के गाता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ

काले गोरे का भेद नहीं हर दिल से हमारा नाता है
कुछ और ना आता हो हमको हमें प्यार निभाना आता है
जिसे मान चुकी सारी दुनिया
जिसे मान चुकी सारी दुनिया मैं बात वही दोहराता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ

जीते हों किसी ने देश तो क्या हमने तो दिलों को जीता है
जहाँ राम अभी तक है नर में नारी में अभी तक सीता है
कितने पावन हैं लोग जहाँ मैं नित नित शीश झुकाता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ

इतनी ममता नदियों को भी जहाँ माता कह के बुलाते हैं
इतना आदर इंसान तो क्या पत्थर भी पूजे जाते हैं
उस धरती पे मैंने जनम लिया ये सोच के मैं इतराता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ
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Hai preet jahan ki reet sada-Purab aur pashchim 1970

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Aug 2, 2011

पुरवा सुहानी आई रे –पूरब और पश्चिम १९७०

पुरुष के समर्पण के चरम के बारे में 'पूरब और पश्चिम' फिल्म के
पिछले गीत में चर्चा हुई थी। इस फिल्म में नारी का इंतज़ार भी है।
गीत में दिखाई देने वाली देसी बाला फिल्म के नायक से मन ही मन
प्यार करती है। फिल्म का नायक विलायती बाला से प्रेम करता है। इस
प्रेम त्रिकोण में चौथा कोण प्रस्तुत गीत में प्रकट होकर मुखर होता है
जो ढोल बजा रहा है-नायक नंबर दो यानि विनोद खन्ना । वो देसी
बाला से प्रेम करता है। गीत का आकर्षण नायिका नंबर एक के चुस्त
कपडे और नायिका नंबर दो का आकर्षक नृत्य है।

इस खालिस देसी धुन को तैयार किया है कल्याणजी आनंदजी ने और गीत
में कहानी कही है इन्दीवर ने।






गीत के बोल:



कही न ऐसी सुबह देखी
आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ जैसे बालक की मुस्कान या फिर दूर कहीं  मंदिर में आ आ आ आ आ
हलकी सी मुरली की तान गुरुबानी गुरुद्वारे में तो मस्जिद से उठती अजान
आत्मा और परमात्मा मिले जहाँ
यही है वो स्थान


ढोली ढोल बजाना
ताल से ताल मिलाना
ढोली ढोला ढोली ढोला
ढोली ढोल बजाना
ता ता थैया तक तक थैया
ताल से ताल मिलाना


पुरवा सुहानी आई रे पुरवा
पुरवा सुहानी आई रे पुरवा
ऋतुओं की रानी आई रे पुरवा
मेरे रुके नहीं पांव
प्रीत पे जवानी छाई रे, पुरवा

पुरवा सुहानी आई रे पुरवा

मौसम का मुसाफिर खड़ा रस्ते में
ला ला ला ला ला ला ला ला ला
हो ओ मौसम का मुसाफिर खड़ा रस्ते में
उसके हाथों सब कुछ लुटा सस्ते में
छोटी सी उमरिया है
लंबी सी डगरिया रे
जीवन है परछाई रे, पुरवा

पुरवा सुहानी आई रे पुरवा

हो ढोली ढोल बजाना
हो ताल से ताल मिलाना

कर ले कर भी ले प्यार की पूजा
ना ना ना ना ना ना ना ना
हो, कर ले कर भी ले प्यार की पूजा
प्यार के रंग पे चढ़े न रंग दूजा
क्या ये कोई सपना है
मेरे लिए अपना है
बात मेरी बन आई रे पुरवा

पुरवा सुहानी आई रे पुरवा

हो मीरा सी दीवानी रे नाचे मस्तानी
मीरा सी दीवानी रे नाचे मस्तानी
होंठों पर हैं गम तो आँखों में पानी
घुँघरू दीवाने हुए
रिश्ते पुराने हुए
गीत में कहानी गाई रे पुरवा

पुरवा सुहानी आई रे पुरवा
पुरवा सुहानी आई रे पुरवा
ऋतुओं की रानी आई रे पुरवा
मेरे रुके नहीं पांव
प्रीत पे जवानी छाई रे, पुरवा

पुरवा सुहानी आई रे पुरवा

हो ढोली ढोल बजाना
हो ताल से ताल मिलाना
ढोली ढोल बजाना
ताल से ताल मिलाना
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Purwa suhani aayi re-Purab aur paschim 1970

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Jul 29, 2011

कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे –पूरब और पश्चिम १९७०

पुरुष वर्ग के समर्पण की इन्तेहा, कुछ अतिशयोक्ति सा लगता
ये गीत अपवाद स्वरुप समाज में आपको कहानी रूप में कहीं न
कहीं ज़रूर मिल जायेगा. ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही इंतज़ार
करती है, कहीं पुरुष भी प्रतीक्षा कर लिया करता है. फिल्म में
नायिका का चरित्र विलायत में रहने वाली पाश्चात्य सभ्यता में पली
बढ़ी युवती का है. नायक देसी परम्पराओं को निभाने वाला एक
“सादा जीवन उच्च विचार” के साथ देशप्रेम की भावना से ओत
प्रोत युवक है. अब इतने विवरण से आपको नायक को पहचानने
में दिक्कत नहीं होना चाहिए.

जैसा कि हिंदी फिल्मों की कहानी की अनिवार्य मांग है-नायक
को नायिका से प्रेम हो जाता है. अब नायिका को अपने रंग ढंग
में ढालने के लिए और उसे वापस देसी संस्कृति की ओर लाने
के प्रयास में नायक ये गीत गाता है.

गीत इन्दीवर का लिखा हुआ है और निस्संदेह इसे उनके द्वारा
रहित गीतों में से सर्वाधिक लोकप्रिय का दर्ज़ा भी प्राप्त है. गीत
कि गुणवत्ता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता. नपा तुला सा
है ये और उतनी ही नपी तुली धुन बनायीं है कल्याणजी आनंदजी
ने जिसे स्वर मुकेश ने दिया है.






गीत के बोल:

कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे –पूरब और पश्चिम १९७०
तडपता हुआ जब कोई छोड़ दे
तब तुम मेरे पास आना प्रिये
मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए

अभी तुमको मेरी ज़रूरत नहीं
बहुत चाहने वाले मिल जायेंगे
अभी रूप का एक सागर हो तुम
कमल जितने चाहोगी खिल जायेंगे
दर्पण तुम्हें जब डराने लगे
जवानी भी दामन छुड़ाने लगे
तब तुम मेरे पास आना प्रिये
मेरा सर झुका है झुका ही रहेगा तुम्हारे लिए

कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे

कोई शर्त होती नहीं प्यार में
मगर प्यार शर्तों पे तुमने किया
नज़र में सितारे जो चमके ज़रा
बुझाने लगीं आरती का दिया
जब अपनी नज़र में ही गिरने लगो
अंधेरों में अपने ही घिरने लगो
तब तुम मेरे पास आना प्रिये
ये दीपक जला है जला ही रहेगा तुम्हारे लिए

कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे
तडपता हुआ जब कोई छोड़ दे
तब तुम मेरे पास आना प्रिये
मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए
...................................
Koi jab tumhara hriday tod de-Purab aur paschim 1970

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